जगमोहन ”आज़ाद”
देहरादून : लोक गायन के क्षेत्र में नया मुकाम हासिल करती,खास तौर पर जागर परंपरा को नये स्वरूप में जीवंत बनाने के क्षेत्र में अग्रसर उत्तराखंड की युवा लोक गायिका हेमा नेगी करासी की आवाज का जादू दुबई में विखरने जा रहा हैं। हेमा व उनके साथी कलाकारों को 14 मार्च को दुबई में आयोजित होने वाले उत्तराखंडी प्रवासियों की ‘जनहित विकास समिति’ ने उन्हें होली मिलन समारोह के लिए आमंत्रित किया हैं। इस कार्यक्रम में हेमा नेगी करासी के साथ युवा गायक प्रदीप बुटोला सौरभ मैठानी के साथ की-बोर्ड पर सुरेंद्र सिंह ऑक्टोपैड पर गोविन्द शरण, बांसुरी व ढोलक पर महेश शरण संगत करेंगे। इससे पहले हेमा जापान और न्यूजीलैंड में भी उत्तराखंडी संस्कृति के रंग बिखेर चुकी हैं।
हेमा नेगी करासी लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्द्धन में जुटी हैं। मांगल, लोकगीत और नृत्यों के साथ जागर के प्रचार-प्रसार में जुटी यह गायिका पौराणिक गाथाओं को भी संजो रही है। इसी कड़ी में देश-भर में स्वास्थ्य-शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहे माताश्री मंगला जी एवं श्री भोले जी महाराज के आशीर्वाद से हाल में आया उनका एलबम ‘नरसिंह जागार’ खासी सुर्खियां बटोर रहा है।
अगस्त्यमुनि ब्लाक के दशज्यूला-कांडई पट्टी के टुखिंड़ा गांव निवासी चंद्र सिंह नेगी की छह संतानों में चौथी हेमा को बचपन से मांगल, जागर और पर्यावरण से जुड़े गीतों के प्रति रुचि थी। जब वह चार वर्ष की थी,तब उनके पिता का देहांत हो गया था। लेकिन हेमा की मां बच्ची देवी ने बेटी के हुनर और हौसले को कभी कम नहीं होने दिया और वह अपनी बच्ची को गायन के क्षेत्र में निरंतर आगे बढाती रही साथ ही मॉं सरस्वती जी का आशीर्वाद हेमा को मिलता रहा।
वर्ष 2003 में जीआईसी कांडई में वार्षिकोत्सव में हेमा ने ‘धरती हमरा गढ़वाल की’ गीत गाया तो समारोह में मौजूद आकाशवाणी व दूरदर्शन से आए सदस्यों ने भी उनकी सराहना की,और यही से हेमा को लोक गायन की यात्रा की शुरूआत हुई। इंटर के बाद हेमा अपनी दीदी के साथ कोटद्वार चली गई। यहां स्नातक की पढ़ाई के साथ संगीत शिक्षक गिरीश शर्मा के दिशा-निर्देशन में उन्होंने संगीत के गुर सीखें और गायन के क्षेत्र में उपलब्धियों को छुने लगी।
बतौर लोक गायिका वर्ष 2005 में हेमा नेगी की पहली ऑडियो गढ़वाली एलबम ‘क्या बुन तब’ और लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के साथ ‘कथा कार्तिक स्वामी’ एलबम रिलीज हुई, जिन्हें लोगों ने खूब सराहा,इसके बाद वर्ष 2008 में हेमा नेगी का विवाह मलाओ-चोपता गांव निवासी अनिल करासी के साथ हुआ। जिन्होंने हेमा को गायिक के क्षेत्र में आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इसी के साथ हेमा का गायन का सफर निरंतर जारी रहा,जो आज तक जारी हैं और गायक के क्षेत्र में हेमा नेगी करासी लगातार नये मुकाम हासिल कर रही है। उनके एलबमों की बात करें तो सन् 2011-12 में ‘माई मठियाणा देवी’, 2013 ‘गिर-गेंदवा’ ने उन्हें नयी पहचान दिलाई हैं। हेमा नेगी करासी के अब तक 15 गढ़वाली एलबम बाजार में आ चुके हैं। हेमा को उनके गायन के लिए देश-विदेश में कई सम्मानों से नवाज़ा जा चुका हैं। जिनमें प्रमुख है।
– वर्ष 2013 में अमर उजाला का लोक गायिका सम्मान
– वर्ष 2015 में उत्तराखंड सरकार का सर्वश्रेष्ठ लोक गायिका सम्मान
– वर्ष 2016 में यूथ ऑइकन नेशनल सम्मान प्रमुख हैं।
लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी जी का हेमा नेगी करासी के गायन के बारे में कहना हैं कि….
’हेमा लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए काम कर रही है, जो सराहनीय है। नई पीढ़ी के गायक व गीतकारों का यह समर्पण सुखद है।‘
यकीनन हेमा नेगी करासी जिस तरह से अपनी लोक सांस्कृतिक धरोहर को जागार और गीतों के माध्यम से विश्व सांस्कृति लोक पटल पर नया आयाम दे रही हैं…यह उत्तराखंड लोक-संस्कृति के साथ-साथ हेमा नेगी करासी के सम्मान को भी बड़े कैनवास पर उकेरने में सफल और सुफल होगा