19 वें राष्ट्रमंडल वानिकी सम्मेलन का राज्यपाल ने किया शुभारम्भ

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सी.एफ.सी. 2017

देहरादून :  राज्यपाल डॉ. के.के. पॉल ने वर्तमान तथा भावी पीढी के हित हेतु राष्ट्रीय वनों के रखरखाव, विविधता तथा उत्पादकता को बनाये रखने का आवाह्न किया। डा.  पाॅल ने कहा कि उत्तराखण्ड जैव विविधता तथा संवदनशील परितंत्र है। अतः यहाँ जैव विविधता तथा परितंत्र के अनुरक्षण में संतुलन बनाये रखने की बडी चुनौतियां है। वन आधारित उधोगों तथा लोगों द्वारा विकास तथा अल्पवधि के नाम पर वनों का विनाश चिंता का कारण है। 

राज्यपाल द्वारा  उद्घाटन के बाद  वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून के दीक्षान्त गृह में 19 वें राष्ट्रमंडल वानिकी सम्मेलन (सी.एफ.सी. 2017) का शुभारम्भ हुआ। सम्मेलन में देश-विदेश के लगभग 600 प्रतिनिधि सहभागिता कर रहे है जिनमेें वैज्ञानिक, शिक्षणविद्, वन अधिकारी, मंत्रालयों, उधोगों, शोध एवं संरक्षण एजेंसियों के प्रतिनिधिगण सम्मिलित है।

उन्होंने कहा सम्मेलन की विषयवस्तु समृद्धि तथा भावी पीढी हेतु वन वर्तमान परिस्थितियों में पहले से कही अधिक सुसंगत है। उन्होनें आशा व्यक्त की कि सी.एफ.सी. 2017 से वानिकी शोध प्रबंधन तथा संरक्षण की ओर नई पहल, नीति तथा विधायी हस्तक्षेप के लिए दीर्घ तथा अल्पवधि के विशिष्ट संस्तुतियां आयेगी।

अनिल माधव दवे, राज्य मंत्री(स्वतंत्र प्रभार) पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार के जनता को दृश्य श्रव्य संदेश में उन्होनें इस महत्वपूर्ण घटना के सफल एवं लाभप्रद परिणाम आने की कामना की। उन्होनें आशा व्यक्त की इस विचार-विमर्श से उचित विकास कार्यसूची तथा वन एवं समुदाय के मध्य समन्वय स्थापित करने हेतु नक्शा तैयार करने को दिशा मिलेगी।

ए.एन.झा ने टिप्पणी की कि सी.एफ.सी. में वानिकी क्षेत्र द्वारा सामना की जा रही बडे़ वैश्विक मुद्दे पर चर्चा हेतु शोधकत्र्ताओं तथा वानिकी प्रशिुक्षओं को साथ लाने का अवसर है। भारत में बढ़ते भंडार के रूप में कार्बन भण्डार का 7 बिलियन टन के साथ 24 प्रतिशत वन क्षेत्र है। मंत्रालय विविध पहुलओं के जरिए प्राकृतिक संसाधनों में वृद्वि हेतु लगातार संघर्ष कर रही है। जनता हेतु आजीविका के अवसर तथा विकल्प पैदा करने के लिए अटिम्बर वन उत्पादों को प्राथमिकता दी जा रही है।

जाॅन इनेस ने विश्व में वाानिकी के इतिहास का वर्णन किया तथा उन्होनें वन अनुसंधान के सम्पूर्ण विश्व में वन प्रबधंन परिदृश्य को मजबूत बनाने हेतु सराहना की। उन्होनें 1968 में नई दिल्ली, भारत में आयोजित सी.एफ.सी. के अनुभवों की याद दिलायी तथा टिप्पणी की कि उस समय भी वाानिकी क्षेत्र में परिवर्तन हो रहे थे तथा इस समय भी जलवायु परिवर्तन तथा सतत् विकास कार्यसूची में फिर से परिवर्तन होने की पुनः स्मृति है।

डा. एस.सी. गैरोला ने कहा कि सी.एफ.सी. से प्राप्त अनुभवों से वैश्विक उम्मीदों को पूरा करने में मदद मिलेगी तथा भारतीय वाानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद इन प्रयासों में सतत् भागीदारी निभाने में मदद करेगी। डा. एस. एस. नेगी ने परितंत्रीय सुरक्षा एवं वन तथा जैव विविधता पर जोर दिया तथा कहा कि वन अनुसंधान संस्थान दक्षिण एशिया वानिकी का ‘मक्का‘ है।

अनिल कुमार ने देश के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में वन प्रबंधन क्षेत्र के मुद्दे उठाये तथा नदियों के संरक्षण तथा जल सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु भू-जल अध्ययन पर जोर दिया। उन्होनें जैव विविधता मुद्दों के प्राप्त परिणामों तथा बढ़ती वनाग्नि की समस्या पर चिंता व्यक्त की। डा. माइकल क्सेन ने सभी के मध्य ज्ञान साझा करने हेतु विज्ञान बंधुत्व बढ़ाने के यूफरो के प्रयासों पर मुख्य रूप से जोर दिया। सतत् रहना मुख्य क्षेत्र है जहाँ यूफरो बड़ी भूमिका निभा सकता है।

डा. पैटर होसमग्रेन ने 196़0 से 2010 तथा अगले 50 वर्षों तक परियोजना निर्माण के विश्व पर्यावरण में मुख्य विकास पर संबोधन किया। उन्होनें कहा कि वृक्ष एवं जनता को साथ लाने के मुद्दों को हल करने के तरीकों का सुझाव दिया। प्रतिष्ठित व्यक्तियों एवं प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए डा. सविता, निदेशक, वन अनुसंधान संस्थान ने पूर्व एवं वर्तमान वानिकीविदों तथा वैज्ञानिकों का भविष्य में वनों के संरक्षण तथा प्रबंधन की ओर सक्रिय रहने का आह्वान किया जिन्हे सतत् विकास उद्देश्यों की यथासंभव प्राप्ति हेतु महत्वपूर्ण बताया।

डा. नीलू गेरा, उप महानिदेशक, भारतीय वाानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ उद्घाटन सत्र का समापन हुआ।

पहला पूर्ण सत्र जिसमें 3 महत्वपूर्ण भाषण के साथ प्रारंभ हुआ। वन सेवा कनाड़ा विज्ञान कार्यक्रम शाखा के महानिदेशक मि. रोरी मिटेन्सन ने कहा कि सतत् प्रबंधित वन पर्यावरणीय चिंताओं की श्रृंखला को प्रभावी ढंग से संबोधित कर सकते है तथा आवश्यक परितंत्रीय वस्तुयें एवं सेवायें, रोजगार तथा अन्य सामाजिक-आर्थिक लाभ प्रदान कर सकते है। श्री विजय शर्मा, चेयरमेन, एन.सी.सी.एफ. तथा पूर्व सचिव, भारत सरकार ने शोध एवं विकास संस्थानों, वित्तीय संस्थानों के उधोग, किसान समूहों, प्रमाणन एजेंसियों, सम्मिलित वन प्रबंधन समितियों तथा वन वासियों के सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु मध्य साझीदारी होने की आवश्यकता पर जोर दिया।

डा. डी. एन. तिवारी सतत् विकास एवं गरीबी उन्मूलन केंद्र, इलाहाबाद, भारत सरकार ने गरीबी तथा ंिलंग संवेदी कार्यनीतियों पर आधारित वैश्विक, राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय स्तर पर एक स्वच्छ नीतिगत ढाचां बनाने पर जोर दिया। इसके उपरान्त 2 तकनीकी सत्र जिसमें प्रत्येक के 3 उप सत्र, 30 प्रस्तुतीकरणों के साथ वनों के सामाजिक तथा अन्वेषण, वनों का आर्थिक महत्व, वन क्षेत्र से बाहर वृक्ष तथा वन सुशासन मेें सर्वोतम कार्य पर आयोजित किये गये।
इस अवसर पर एक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। श्री ए.एन.झा, सचिव, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार, जाॅन इनेस, चेयरमेन, कनाडा द्वारा सम्मिलित रूप से इसका उद्घाटन किया गया। प्रदर्शनी 5 अप्रैल तक लगेगी तथा जनता के लिए खुली रहेगी। बांस फर्नीचर, हस्तनिर्मित वस्तुयें, वन उत्पाद, कार्बनिक उत्पाद, इत्रीय उत्पाद जनता हेतु मुख्य आर्कषण होगें।

सम्मलेन में विशिष्ट अतिथि  ए.एन.झा, सचिव, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार, विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. जाॅन इनेस, राष्ट्रमंडल वानिकी संगठन के स्थाई समिति के अध्यक्ष, डा. एस. एस. नेगी, पूर्व वन महानिदेशक एवं विशेष सचिव, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार, श्री अनिल कुमार, अतिरिक्त महानिदेशक, वन्यजीव, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार, डा. एस. सी. गैरोला, महानिदेशक, भारतीय वाानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, डा. माइकल क्सेन, इफरो, पीटर हाॅलमगरेन, महानिदेशक सिफोर, निदेशक, आइजीएनएफए, देहरादून, निदेशक, वन्य जीव संस्थान, भारत सरकार, देहरादून, महानिदेशक, भारतीय वन सर्वेक्षण, दे0दून तथा पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार के अन्य वरिष्ठ अधिकारीगण तथा वैज्ञानिक मौजूद रहे।