बिजली कर्मचारियों की हड़ताल को देखते हुए सरकार ने सेना से मांगी मदद !

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  • सरकार उत्तराखंड को हड़ताली प्रदेश न बनने देने पर आमादा
  • दूसरी तरफ बिजली कर्मचारी हड़ताल पर अड़े
  • सेना की मदद के  विकल्प पर सरकार कर रही विचार

देहरादून : एक तरफ सरकार उत्तराखंड को हड़ताली प्रदेश न बनने देने पर आमादा है तो वहीँ दूसरी तरफ बिजली कर्मचारी हड़ताल पर अड़े हुए हैं जबकि सचिव ऊर्जा राधिका झा का कहना है कि कर्मचारियों की मांगों का निस्तारण कर दिया गया है। किसी भी संवर्ग को कोई वित्तीय नुकसान नहीं हो रहा है। इसके बाद भी कर्मचारी हठधर्मिता पर अड़े हुए हैं। इसके बाद भी कर्मचारी मानने को तैयार नहीं है। कर्मचारी हड़ताल करते हैं, तो सरकार आम जनता की सुविधा को ध्यान में रखते हुए सभी विकल्पों पर विचार कर रही है। किसी भी सूरत में आम जनता को परेशान नहीं होने दिया जाएगा।

वहीँ कर्मचारियों के तेज होते आंदोलन के साथ ही सरकार भी सख्त व सतर्क हो गई है। हड़ताल से खड़ी होने वाली स्थिति से निपटने को हर विकल्प पर विचार किया जा रहा है। दूसरे राज्यों से सम्पर्क साधने के साथ ही सेना की मदद का विकल्प पर भी विचार हो रहा है। बुधवार को सचिव ऊर्जा ने इन सभी विकल्पों पर विचार करने को तीनों ऊर्जा निगमों के एमडी को तलब कर लिया है। आईटीआई व पालिटेक्निक के 25 छात्रों को ज्वाइन भी करा लिया गया है।

इस बार सरकार बिजली कर्मचारियों के आंदोलन से सख्ती से निपटने की तैयारी में है। ऊर्जा निगम प्रबंधन ने 25 छात्रों को ज्वाइन कराते हुए टिहरी, उत्तरकाशी, देहरादून, हरिद्वार समेत तमाम दूसरे जिलों में तैनाती देना शुरू कर दिया है। एक दो दिन के भीतर दूसरे छात्रों को भी ज्वाइन कराया जा रहा है। इन सभी छात्रों को एक एक सप्ताह का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। पॉवर सब स्टेशन संचालन से लेकर सप्लाई सिस्टम को सामान्य किए जाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। ठेकेदारों को मैनपॉवर जुटाने के निर्देश दिए गए हैं।

इसके साथ ही बुधवार को हड़ताल से सख्ती से निपटने के विकल्पों पर चर्चा को सचिव ऊर्जा राधिका झा ने तीनों ऊर्जा निगमों के एमडी को तलब कर लिया है। सूत्रों की माने तो सरकार यूपी, हिमाचल समेत दूसरे राज्यों से संपर्क साधने के साथ ही बड़े सप्लाई स्टेशनों को सेना के हवाले भी करने का मन बना रहा है। हालांकि फाइनल बुधवार को सचिव ऊर्जा व गुरुवार को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में होने वाली बैठक में ही तय होगा।

वहीँ सरकार ने हड़ताल से निपटने को छात्रों को जिम्मेदारी सौंपने की तैयारी की है, लेकिन विशेषज्ञों की माने तो छात्र एक सप्ताह की ट्रेनिंग के बाद भी जिम्मेदारी नहीं संभाल पाएंगे। खासतौर पर पॉवर सप्लाई सब स्टेशन, ट्रांसमिशन स्टेशन के साथ ही बड़े जल विद्युत गृहों को संभालने नये छात्रों के लिए आसान न होगा। वहीँ ऐसी स्थिति से निबटने के लिए और बिजली कर्मचारियों के आंदोलन को देखते हुए सरकार ने संविदा कर्मचारियों से संपर्क साधा है। संविदा कर्मचारियों के पदाधिकारियों को वार्ता के लिए बुला लिया गया है। दूसरी ओर संविदा कर्मचारियों ने बिजली कर्मचारियों के आंदोलन को अभी नैतिक समर्थन ही दिया है। संगठन उपाध्यक्ष विनोद कवि ने कहा कि चार जुलाई को सचिवालय कूच में संविदा कर्मचारी भी शामिल हो रहे हैं, लेकिन हड़ताल में शामिल होने पर फैसला नहीं लिया गया है। उन्होंने संविदा कर्मचारियों की मांगों को पूरा करने को वार्ता के लिए बुलाने का स्वागत किया।

वहीँ दूसरी तरफ विद्युत संघर्ष समिति ने पे मेट्रिक्स व एसीपी विसंगति की मांग के निस्तारण को लेकर दबाव तेज कर दिया है। समिति के बैनर तले कर्मचारियों ने ऊर्जा निगम मुख्यालय में कैंडल मार्च निकाल विरोध जताया। पदाधिकारियों ने साफ किया कि इस बार सरकार के साथ आर पार की लड़ाई लड़ी जाएगी। 26 दिसंबर को पिटकुल मुख्यालय में रैली निकाली जाएगी। चार जनवरी को सचिवालय कूच में ताकत दिखाई जाएगी। पांच जनवरी को हड़ताल शुरू कर दी जाएगी।

कैंडल मार्च में राकेश शर्मा, प्रदीप कंसल, डीसी ध्यानी, नत्थू सिंह, एमसी गुप्ता, अनिल मिश्रा, सुधीर कुमार, संदीप शर्मा, पवन रावत, सोहन शर्मा, अवनीश गुप्ता, आशीष सती, राजकुमार, राजेश जोशी, संदीप पंवार, सपना, वीके जैन, कविता, हारुन रशीद, विपिन कुमार, उमा शंकर, ममता बिष्ट, किशन सेमवाल, जतन सैनी आदि मौजूद रहे।