आजादी के सिपाही को मौत के बाद मिला इंसाफ !

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  • पति के देहांत के बाद पत्‍नी ने जारी रखी कानूनी लड़ाई

नैनीताल : राजधानी देहरादून के त्यागी रोड के रहने वाले सतेश्वर शर्मा तब 12वीं कक्षा में पढ़ते थे, जब उन्होंने वर्ष 1942 में आजादी की लड़ाई में भाग लिया था। स्वतंत्रता संग्राम में उन्हें 42 दिन जेल में भी बिताने पड़े थे। वर्ष 1981 में उन्होंने पहली बार पेंशन की मांग की थी। वह तब से लगातार हक मांगते रहे पर उत्तरप्रदेश से लेकर उत्तराखंड तक की सरकारों ने उनकी एक नहीं सुनी। थक हारकर उन्होंने वर्ष 2014 में नैनीताल हाईकोर्ट में अपने हक़ की लड़ाई का मामला दर्ज कराया। इस बीच स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सतेश्वर शर्मा की मौत हो गयी। लेकिन इनकी मृत्यु के बाद 94 वर्षीय पत्नी राजेश्वरी ने ये लड़ाई जारी रखी और जीत हासिल की। वर्तमान में सतेश्वर के परिवार में उनके बेटे राकेश शर्मा, बहू नीलम शर्मा, पोते उदित व उदयनारायण शर्मा मौजूद हैं। सभी का कहना है कि कोर्ट से मिली जीत से वह जो सम्मान महसूस कर रहे हैं, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।

गैरतलब हो कि आजादी की लड़ाई में भाग लेने के कारण वर्ष 1942 में जेल गए सतेश्वर शर्मा का बीते साल 22 नवंबर को 100 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया। वह ताउम्र उस हक के लिए लड़ते रहे, जिसके वे हकदार थे। जिस देश की आजादी के लिए वह लड़े, आजादी बाद उसी देश में अपनी लड़ाई हार चुके थे। वह तो शुक्र है कि नैनीताल हाईकोर्ट का जिसने उन्हें स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन का हकदार करार दे दिया।

नैनीताल हाईकोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानी सतेश्वर शर्मा को पेंशन और अन्य सुविधा नहीं देने को गंभीरता से लिया और मामले में राज्य सरकार पर साढ़े तीन लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। साथ ही दिवंगत शर्मा की पत्नी को 1981 से अब तक की पेंशन राशि का भुगतान एक महीने में करने के निर्देश दिए हैं। गुरुवार को न्यायमूर्ति शरद शर्मा की पीठ ने मामले की सुनवाई की। स्वर्गीय सतेश्वर शर्मा की पत्नी देहरादून निवासी राजेश्वरी शर्मा ने इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें कहा कि सतेश्वर शर्मा ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भाग लिया था। इस दौरान वह 40 दिन तक जेल में भी रहे थे। याचिका में कहा कि उनके पति ने 1975 की पेंशन नियमावली के तहत पेंशन आदि सुविधा के लिए आवेदन किया था, लेकिन सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया।

पांच मार्च 1981 को उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर पहली बार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की पेंशन की मांग की थी। तब से वह अपने जीवित रहने तक पूर्ववर्ती राज्य उत्तर प्रदेश और फिर उत्तराखंड की सरकारों को करीब 500 पत्र लिखकर हक की मांग कर चुके थे। उनके पास जेल जाने का प्रमाण पत्र भी मौजूद था। इस प्रकार के अन्य मामलों में लोगों को पेंशन दे दी गई। पेंशन की उम्मीद में पिछले साल 100 वर्ष की आयु में सतेश्वर शर्मा का निधन हो गया। हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीर बताते हुए राज्य सरकार पर जुर्माने के साथ ही 1981 से अब तक की पेंशन राशि का भुगतान एक महीने के अंदर करने के निर्देश दिए हैं। हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को आदेश दिए हैं कि वह सतेश्वर शर्मा की पत्नी राजेश्वरी शर्मा को एक माह के भीतर वर्ष 1981 से पेंशन प्रदान करना सुनिश्चित करें।