पिटकुल के चार इंजीनियर ट्रांसफार्मर घोटाले में निलंबित

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बड़े खिलाड़ी तत्कालीन एमडी सुमेर सिंह यादव पर कोई कार्यवाही नहीं

देहरादून। पिटकुल में हुए ट्रांसफार्मर खरीद घोटाले की गाज पिटकुल के चार इंजीनियरों पर गिरी है। हालांकि इस खरीद में सबसे बड़े खिलाड़ी तत्कालीन एमडी सुमेर सिंह यादव पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है। खरीद में गड़बड़ी को लेकर एक मुख्य अभियंता, एक अधीक्षण अभियंता और दो अधिशासी अभियंता फिलहाल निलंबित किए गए हैं। जांच के अंतिम दौर में पहुंचने पर आगे कार्यवाही करने का भरोसा भी दिया गया है। गौरतलब है कि इस मामले का खुलासा उत्तराखंड समाचार डाॅट काम ने 24 मार्च को कर दिया था।

प्रबंध निदेशक पिटकुल के कार्यालय से जारी की गई विज्ञप्ति में कहा गया है कि 220 केवी उपकेंद्र झाझरा पावर ट्रांसमिशन कारपोरेशन आफ उत्तराखंड देहरादून में 80 एमवीए ट्रांसफार्मर (आईएमपी मैक) स्थापित किया गया था। पहली बार खराब होने पर ट्रांसफार्मर ठीक करने फर्म को भेजा गया। रिपेयर के बाद 15 मार्च 2017 को ट्रांसफार्मर फिर से खराब हो गया। इस मामले की जानकारी प्रबंध निदेशक एसएन वर्मा ने प्रमुख सचिव ऊर्जा उमाकांत पंवार को दी। प्रमुख सचिव के निर्देश पर मामले की जांच बैठा दी गई।
प्रारंभिक जांच में यह बात सामने आई है कि कुछ विभागीय अधिकारियो द्वारा अपने कर्तव्यों का सही तरीके से अनुपालन नहीं किया गया है। प्रथम दृष्टिया इसके लिए पिटकुल के चार अधिकारियों को जिम्मेदार माना गया है। जिसमें मुख्य अभियंता गढ़वाल जोन अजय कुमार अग्रवाल, अधीक्षण अभियंता ऋषिकेश राकेश कुमार, अधिशासी अभियंता पारेषण खंड देहरादून राजेश कुमार गुप्ता, अधिशासी अभियंता संबद्ध मुख्य अभियंता लक्ष्मी प्रसाद पुरोहित को निलंबित किया गया है। मुख्य अभियंता (क्रय एवं अनुबंध) अनिल कुमार को तत्काल प्रभाव से स्थानांतरित कर मुख्य अभियंता परियोजना कुमाऊं हल्द्वानी तैनात किया गया है।
प्रबंध निदेशक एसएन वर्मा ने कहा है कि यह प्रारंभिक जांच का निष्कर्ष है। जांच की प्रक्रिया जारी है, यह पूर्ण होने के बाद जो तथ्य सामने आएंगे, उसके आधार पर निर्णय लिए जाएंगे।
गौरतलब है कि इस ट्रांसफार्मर खरीद प्रकरण में जब सुमेर सिंह यादव के पास सत्ता थी, वह दोहरे चार्ज ऊर्जा निगम और पिटकुल के एमडी थे, तभी यह मामला तूल पकड़ गया था। लेकिन सत्ता के भरोसे यह बताने की कोशिश की गई कि कहीं कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। बीच-बीच में इस मामले को भाजपा समेत कुछ अन्य दलों के नेता भी उठाते रहे, लेकिन इसे दरकिनार किया जाता रहा।चौथी विधानसभा गठन के बाद बंपर बहुमत से सरकार में भाजपा आई। विधानसभा के पहले सत्र के दिन 24 मार्च को उत्तराखंड समाचार डाॅट काम ने इस पूरे प्रकरण को सामने रख दिया था। और अब जांच रिपोर्ट में जो तथ्य सामने आए हैं, वह इस की रिपोर्ट की पूरी तरह पुष्टि करते हैं। अब देखना यह होगा कि सरकार पिछले घोटालों की तरह इसे भी दरकिनार तो नहीं कर देती है? यदि इस पर कोई एक्शन होता है तो इस जैसे कई घोटालों के मास्टर माइंड तत्कालीन एमडी सुमेर सिंह यादव पर क्या कार्यवाही करती है?