आपदा के पांच सालों में जानिए कितने बदले केदार !

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  • आज बहुत कुछ बदल चुका है केदार !
  • तबाही के दंश आज भी हैं मौजूद !

 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून । बम भोले… बाबा केदारनाथ की जय… ऐसे ही नारों से अलसुबह लभगग चार बजे 16 जून वर्ष 2013 को केदारघाटी गूंज रही थी। किसी को भी पता नहीं था कि अगले ही पल क्या होने वाला है। श्रद्धालुओं से लेकर पूजा अर्चना करने वाले,वेदपाठी पंडित मंदिर के मुख्य पुजारी और रावल तक अगले ही पल पूजा शुरू करने की तैयारी में थे। वहीँ दिनभर की थकाऊ यात्रा के बाद तीर्थयात्री कुछ पलों के लिए सुस्ता भी रहे थे। कुछ पुजारी व अन्य लोग भी आराम कर रहे थे। लेकिन यह रात उन सबके लिए जैसे कयामत की रात बनकर आयी थी। 14 से 17 जून के बीच उत्तराखंड व आसपास के इलाकों में मानसून की बादल जमकर बरस रहे थे। यह बारिश साधारण बारिश से कहीं ज्यादा थी और इन चार दिनों में मानसून के दिनों में होने वाली बारिश के मुकाबले 375 फीसदी से ज्यादा बादल बरसे। इस बारिश के कारण केदारनाथ घाटी के ऊपर 3800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चौराबारी ग्लेशियर पर भारी दबाव पड़ा। यहीं से निकलने वाली मंदाकिनी नदी में जलस्तर लगातार बढ़ता चला गया।

16 जून 2013 की रात उस दौरान केदारनाथ में घड़ियाल, शंख और श्लोक आखिरी बार गूंजे थे। इसके बाद शिव की इस नगरी में ऐसा जल प्रलय आया कि केदार घाटी की का पूरा रूप ही बदल गया। पूरी केदारपुरी में वीरानी ही नहीं छायी बल्कि यह खंडहरों और चीख पुकार कि नगरी में एकाएक बदल गई। लोग मदद के लिए पुकार रहे थे और रास्तों पर लाशों के ढेर लगे थे। इस सब तबाही के बीच अगर कुछ सही सलामत बचा था तो वो थे केदारनाथ मंदिर। हालांकि पानी मंदिर के अंदर तक गया जरूर लेकिन इस धाम को क्षति नहीं पहुंचा सका।

इस व्यापक तबाही में न होटल बचे थे और न ही धर्मशालाएं। चारों तरफ बह रही थीं सिर्फ लाशें। तबाही का कारण बना केदरानाथ के पड़ोस में बहने वाली नदी मंदाकिनी की धारा का रुख बदलना। पूरे उत्तराखंड की नदियां किनारे तोड़कर बहने लगीं। देवभूमि की नदियों के प्रचंड प्रवाह में देव और महादेव भी बह गए। पहाड़ सरकते गए, सड़कें धंस गयी । कुछ नहीं बचा था तब। घटना के चार दिन बाद सूबे कि सरकार जब जागी तब तक सब ख़त्म हो चुका था। उसके बाद आईटीबीपी ने तब केदारनाथ में फंसे कई लोगों को बचाकर निकाला। कहते हैं कि कई शव कहां गए उनका पता नहीं चल पाया। काफी दिनों तक लोग अपनों को ढूंढते रहे।

16 जून को भारी बारिश के कारण तमाम प्राकृतिक ताल भर गए, बरसाती पानी के भारी  दबाव से चौराबारी ताल का बांध टूट गया। इससे लाखों गैलन पानी सरस्वती और मंदाकिनी नदी में काल विकराल बनकर बहने लगा। जल्द ही बाढ़ ने केदारनाथ मंदिर के आसपास और क्षीर नदी  ने दघाट तक में तबाही मचा दी। केदारनाथ से करीब 2 किमी ऊपर करीब 400 मीटर लंबे, 200 मीटर चौड़े और 15-20 मीटर गहरे चौराबारी ताल को गांधी सरोवर के नाम से भी जाना जाता है। 5-10 मिनट के अंदर पूरे ताल का पानी यहां से निकला और काल बनकर नीचे केदारघाटी में बसे लोगों और श्रद्धालुओं पर जैसे काल बनकर टूट पड़ा। उसके बाद क्या हुआ किसी को नहीं पता सभी अपनी -अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे इसी भगा दौड़ी में कई लोग इस जल सैलाब में ताश के पत्तों की तरह बिखरते चले गए। माँ अपनी आँखों से बच्चों को उस सैलाब में बहते देखने को विवश थी तो किसी कि पत्नी अपने पति को अपनी आँखों के सामने बहते देखने को मजबूर थे। काल के इस विकराल रूप के सामने सभी मजबूर थे। 

केदार घाटी में घटित इस घटना पांच साल हो चुके हैं इन पांच सालों में केदार धाम में बहुत कुछ परिवर्तन देखने को मिला है वहीँ इस बार यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं कि संख्या ने भी पिछले सारे रिकॉर्ड ध्वस्त करते हुए एक नया कीर्तिमान बनाया है।  इन पांच सालों में केदारनाथ धाम के करोड़ों के कार्य पिछली सरकारों से लेकर वर्तमान सरकार करा रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्राथमिकताओं में केदारनाथ धाम का नवनिर्माण किया जा रहा है।  देश के प्रधानमंत्री पिछले वर्ष दो-दो बार केदारनाथ का दर्शन तो कर ही चुके हैं वहीँ वे केदारनाथ पर लगातार ड्रोन कैमरे से नज़र भी रखे हुए हैं। सूबे के मुख्य मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत से लेकर मुख्य सचिव  उत्पल कुमार सिंह तक केदारनाथ में चल रहे कार्यों पर नज़र गढ़ाए हुए हैं। 

गौरतलब हो कि वर्ष 2013  में  वाडिया  इंस्ट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने चौराबारी ग्लेशियर के पास एक ऑब्जरवेटरी बनायी। उसके अनुसार 15 जून शाम 5 बजे से लेकर 16 जून सुबह 5 बजे तक सिर्फ 12 घंटे में ही चौराबारी ग्लेशियर पर 210 मिमी बारिश दर्ज की गई थी। इसके बाद 16 जून सुबह 5 बजे से शाम 5 बजे तक अगले 12 घंटे में 115 मिली बारिश और हो गई। इस तरह सिर्फ 24 घंटे में ही यहां 325 मिली बारिश हो चुकी थी। मौसम विभाग ने पहाड़ी इलाकों में भारी बारिश की चेतावनी पहले ही जारी की हुई थी। दक्षिण-पश्चिम मानसून और पश्चिमी विक्षोभ के यहां टकराने के कारण काले घने बादलों ने हिमालय के ऊपर डेरा डाल दिया था। इससे एक साथ कई बादल फटने की घटनाएं हुईं और बादलों से मौत बरसने लगी।

केदानाथ मंदिर और टाउन मध्य हिमालय के पश्चिमी छोर पर बसा है। यहां घाटी में मंदाकिनी नदी बहती है और रामबाड़ा तक यहां इसका कुल कैचमेंट एरिया 67 स्क्वायर किमी का है। इसमें से भी करीब 23 फीसद इलाके में ग्लेशियर हैं। इस त्रासदी के इतना बड़ा होने के पीछे समूचे कैचमेंट एरिया का यू आकार की घाटी होना है। यहां भर्त खूंटा (6578 मी), केदारनाथ (6940 मी) महालय चोटी (5970 मी) और हनुमान टॉप (5320 मी) जैसी ऊंची-ऊंची चोटियां हैं।

लगातार हो रही बारिश के कारण अंग्रेजी के  ‘U’ आकार की इस घाटी में खैरू गंगा जैसी छोटी धाराओं ने भी रौद्र रूप ले लिया। पतली-पतली धाराओं के रूप में बहने वाले इन नालों में पानी के साथ ही हजारों टन मलबा और पत्थर बहकर आने लगे। ऐसी सभी धाराएं जब पहले से ही खतरे के निशान से ऊपर बह रही मंदाकिनी नदी में मिलीं, तो तबाही को रोकना शायद किसी के बस की बात नहीं थी। इस जल प्रलय ने केदारनाथ घाटी में तबाही की वो इबारत लिख दी, जिसे इससे पहले शायद ही कभी सुना गया होगा। इसमें 100 से ज्यादा गांव और 40 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित हुए। आपदा के पांच साल बीत जाने के बावजूद 4 हजार से ज्यादा लोग आज तक लापता हैं। पिछले चार साल में साढ़े 6 सौ से ज्यादा नरकंकाल इलाके में जहां-तहां पड़े हुए मिल चुके हैं।