थमता नज़र नहीं आ रहा सरकारी पैसे पर विदेश यात्राओं का सिलसिला !

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  • विदेश यात्राओं का फायदा उत्तराखंड की जमीन पर कहीं नज़र नहीं आया अब तक 

DEHRADUN : कर्ज में आकंठ डूब चुके उत्तराखंड की ब्यूरोक्रेसी का सरकारी पैसे पर विदेश यात्राओं का सिलसिला थमता नज़र नहीं आ रहा है।  राज्य के अस्तित्व में आने के दिन से लेकर आज तक उत्तराखंड में तैनात अधिकारियों ने न जाने कितनी विदेश यात्रायें की होंगी लेकिन इस राज्य को इन विदेश यात्राओं का कितना फायदा मिला यह तो भगवान ही जनता है लेकिन सैकड़ों विदेश यात्राओं से लौटे सूबे के यूरोक्रेट्स को ही इन यात्राओं से कितना फायदा हुआ यह भी आज तक उत्तराखंड की जमीन पर उतरता कहीं नज़र नहीं आया है।

इस बार सूबे की प्रभावशाली सचिव दम्पति राधिका झा औऱ नितेश झा द्वारा सरकार के पैसे पर यूरोप की ओर जा रहे हैं। बहाना तो है एक शिष्टमंडल का जिसमे मदन कौशिक के साथ मनोज रावत, पूरन फर्त्याल, चन्दन रामदास,आदेश चौहान, सुरेंद्र सिंह जीना जा रहे हैं वहीँ सरकारी अधिकारियों में नत्था सिह रावत,नितेश झा,राधिका झा,और प्रदेश के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह भी विदेश यात्रा पर जा रहे हैं ।

सत्ता के गलियारों में अब यह सवाल उठ रहा है कि जब सूबे के मुख्य सचिव विदेश यात्रा पर जा रहे हैं तो ऐसे में झा दम्पति क्यों और किस आधार पर जा रही है। वह भी तब जब सूबे के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह एक महीने पहले एक सचिव की विदेश यात्रा पर सवाल उठाते हुए उनसे यह पूछ चुके हैं कि उनकी आज तक की विदेश यात्राओं का राज्य को क्या लाभ हुआ और उन्होंने जितनी भी विदेश यात्रायें की हैं क्या उन्होंने उनका कोई ज्ञान राज्य सरकार से साथ साझा किया है। ऐसी चर्चा है कि उसके बाद से ही सूबे के मुख्य सचिव और इस सचिव के बीच संबंध में अब वह बात नहीं रही। 

सूबे की ब्यूरोक्रेसी कितनी बेपटरी हो चुकी है इस बात का प्रमाण तब मिलता है जब मुख्यसचिव के इस तरह के कठोर पत्र के बाद भी वह चर्चित सचिव एक सप्ताह की विदेश यात्रा करता है वह भी कथित तौर पर अपने पैसे से हालाँकि एक जानकारी के अनुसार अभी तक सरकार को उन्होंने खर्चे का ब्योरा उपलब्ध नहीं करवाया है जबकि नियमतः किसी भी अधिकारी को विदेश से लौटने के बाद अपने खर्च इत्यादि की जानकारी और यात्रा विवरण सरकार को उपलब्ध करवाना होता है. लेकिन मुख्यसचिव के निर्देश के बाद भी क्यों जमा नहीं करवाया गया को लेकर सचिव की यात्रा सवालों के घेरे में हैं। यानि जब मुख्य सचिव ने सरकारी पैसे की बर्बादी पर अंकुश लगाया तो सचिव महोदय कथित रूप से अपने खर्चे पर विदेश घूम आये वह भी सरकारी दौरा बनाकर। चर्चा तो यह भी है कि सचिव की उस सरकारी दौरे का सारा खर्चा एक कंपनी द्वारा उठाया गया था जिसको सचिव ने कई जगह सूबे की कई योजनाओं में फायदा दिलवाया था।