Retirement के बाद भी पेयजल निगम में सरकारी काम निबटाते हैं पूर्व कर्मचारी !

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  • सरकार और शासन  आदेशों की खुलकर उड़ाई जा रही हैं धज्जियां !

देहरादून : उत्तराखंड पेयजल निगम में न सरकार की चलती है और शासन की यहाँ चलती है तो  सिर्फ एमडी की।  उनके सामने न सरकार के कोई आदेश मायने रखते और न शासन के। सत्ता और शासन के गलियारों में यह चर्चा आम हो चुकी है इस चर्चा तो तब बल मिला जब पेयजल निगम के मुख्यालय में बीते दिन एक सेवानिवृत कर्मचारी अपनी पूर्व सीट पर निगम के तमाम कर्मचारियों और अधिकारियों को बैठा हुआ दिखाई दिया तो सबके जेहन में एक ही सवाल कौंध रहा था कि क्या कोई अधिकारी या कर्मचारी सेवानिवृति की बाद भी अपने पूर्व कार्यालय में अपनी सीट पर बैठा सकता है तो आपका जवाब होगा शायद नहीं ? 

लेकिन उत्तराखंड पेयजल निगम के मुख्यालय में वह भी एमडी के दफ्तर में बीती 31 अक्टूबर को सेवा निवृत होने वाला एक कर्मचारी एक नवंबर को पूरे दिन अपने पूर्व कार्यालय में बैठा ही नहीं बल्कि उसने उस कार्यालय से सम्बंधित सभी शासकीय कार्य भी सम्पादित किये। देखिये यह फोटो बीते दिन यानि एक नवम्बर का है जब एक सेवानिवृत कर्मचारी अपनी पूर्व सीट पर बैठा सरकारी कार्य सम्पादित करता दिखायी दे रहा है। वह भी तब जब  सूबे के पेयजल मंत्री प्रकाश पंत ने 16 अक्टूबर 2010 को अपने ”पत्रांक 5309/VIP/2017 में साफ़ लिखा कि जब शासन द्वारा साफ़ निर्देश हैं कि समूह ”ग” और समूह ”घ” के पदों पर किसी भी प्रकार की पुनर्नियुक्ति न की जाय और अगर कोई अपरिहार्य स्थिति हो तो उनसे अनुमोदन के बाद ही अग्रेत्तर कार्रवाही की जाय”

जबकि पेयजल निगम के ही कर्मचरियों द्वारा बीते दिनों  मुख्यमंत्री सहित पेयजल मंत्री को भेजे गए इस पत्र में कहा गया था कि शासनादेश के अनुसार समय रहते इन संविदा के पदों पर तुरंत रोक लगाए जाने की जरुरत है। इसी समाचार को ”देवभूमि मीडिया” ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था इसका साफ़ मतलब है कि पेयजल निगम के मातहत अधिकारी अपने ही मंत्री के आदेशों को ठेंगा दिखाकर अपनी मर्जी से संस्थान को चलाना चाहते हैं।  वह भी तब जब सरकार और मंत्री दोनों के स्पष्ट आदेश हैं कि सेवानिवृति के बाद किसी भी कर्मचारी या अधिकारी की पुनर्नियुक्ति नहीं होगी। 

गौरतलब हो कि पेयजल निगम के ही कर्मचरियों द्वारा बीते दिनों मुख्यमंत्री सहित पेयजल मंत्री को एक पत्र भेजकर कहा था कि घाटे में चल रहे निगम में तथा प्रधान कार्यालय में अनधिकृत रूप से विभागीय व शासनादेशों का उलंघन कर नियमविरुद्ध सेवा निवृत कर्मियों को संविदा पर रखते हुए निगम और सरकार को चूना लगाया जा रहा है। पत्र में लिखा गया था  कि अधिशासी अभियंता मुकुल सिन्हा, मुख्य अभियन्ता सुनील कुमार वैयक्तिक सहायक आनंद जोशी ,चपरासी बेलवाल और शांति प्रसाद को सेवानिवृति होने के बाद भी संविदा पर तैनाती देने की तैयारियां की जा रही है। जबकि विभाग में नियमित फील्ड कर्मचारी जो मिनिस्ट्रियल स्टाफ एवं चतुर्थ श्रेणी स्टाफ की योग्यता रखते हैं को तैनात न करते हुए अनावश्यक रूप से सेवा निवृत कर्मियों को पुनर्नियुक्त कर निगम सहित सरकार पर व्ययभार बढ़ाया जा रहा है।  

पत्र में कहा गया था कि जबकि शासन द्वारा बीती 12 सितंबर 2017 को प्रमुख सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी द्वारा  निर्गत शासनादेश संख्या 41 /XXX II (7 )50 (4) 2017 में साफ़ तौर पर कहा गया है कि समूह ”ग” व ”घ”  के पदों पर पुनर्नियुक्ति अथवा पर्न नियोजन नहीं किया जाएगा, लेकिन विभागीय प्रबंध निदेशक द्वारा उक्त शासनादेश का खुला उलंघन करते हुए मनमाने ढंग से अपने चहेतों को संविदा पर रखा जा रहा है इतना ही नहीं इनकी संविदा अवधि बार-बार बढाकर सरकार को व निगम को आर्थिक क्षति पहुंचाई जा रही है। 

वहीँ पत्र में लिखा गया था कि प्रबंध निदेशक कैंप में रोहणीवाल वैयक्तिक सहायक की तैनाती की जानी थी लेकिन उनकी तैनाती इसलिए नहीं की गयी कि उन्हें प्रबंध निदेशक का विश्वास पात्र नहीं माना जाता है  जबकि उक्त पद पर और उक्त वेतनमान में रोहणीवाल ही अहर्ता रखते हैं।  परन्तु उन्हें नज़रअंदाज़ कर और नकारा घोषितकरके नियम विरुद्ध आनंद जोशी को महत्वपूर्ण पद पर कैंप कार्यालय में इसलिए रखा गया है कि वह सेटिंग -गेटिंग कर प्रबंध निदेशक के काले कारनामों में सहयोग दे सकें।  

कर्मचारियों में पत्र में कहा था  कि उन्हें सूत्रों से जानकारी प्राप्त हुई है कि आनंद जोशी को पुनः एक साल के लिए संविदा पर रखने के सम्बन्ध में जो पत्रावली बनायीं गयी है उसमें जोशी को विभिन्न फार्मों के प्रतिनिधियों से संपर्क करने एवं वार्तालाप करने में निपुण होने का उल्लेख है। पत्र में कहा गया है कि यह सत्य है कि आनंद जोशी द्वारा ही फार्मों के मालिकों एवं प्रतिनिधियों से सांठ गांठ क्र प्रबंध निदेशक से मिलाया जाता है इसीलिए आनंद जोशी जो कि वर्तमान में संविदा पर हैं को ऐसे महत्वपूर्ण पद पर रखा गया है एवं उन्हें कैंप कार्यालय के महत्वपूर्ण अभिलेख तक सौंपे गए हैं।  जबकि उपरोक्त शासनादेश दिनांक 12 सितम्बर 2017 के अनुसार उन्हें कोई भी अधिकार इस पद के लिए अधिकृत नहीं करते। जबकि कैंप कार्यालय में पूर्ण कालिक रूप में बहुगुणा वैयक्तिक सहायक को नज़रअंदाज़ करके उनसे कोई कार्य नहीं लिया जा रहा है। 

सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि उत्तराखंड जैसे प्रदेश जहाँ लाखों बेरोजगार सड़कों पर रोजगार के लिए धक्के खा रहे हों वहां किसी सेवानिवृत को पुनर्नियुक्ति पर रखना क्या प्रदेश के बेरोजगारों से साथ अन्याय नहीं है लेकिन प्रदेश में यह सब तब भी चल रहा है जबकि सरकार ने इस तरह की पुनर्नियुक्ति पर रोक लगा रखी है। बहरहाल पेयजल निगम में न सरकार के किसी आदेश की तामीली की जा रही है और न शासन के किसी आदेश की ही इस सबके बाद भी  पेयजल निगम के एमडी का एकछत्र राज निगम बिना रोक -टोक के चल रहा है ।