तीन अभियंताओं के संविलियन पर सूबे का पूरा सिस्टम नतमस्तक !

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  • उत्तरा पंत बहुगुणा के मामले से भी सिस्टम ने नहीं लिया कोई सबक !
  • क्षेत्रीय विधायक मुख्यमंत्री के समक्ष अंगुली उठा चुके हैं इनके कार्यों पर !
  • चढ़ावा चढ़ाते-चढ़ाते अपर मुख्य सचिव की कुर्सी तक जा पहुंची है फाइल !
  • राजनीतिक और ब्यूरोक्रेटिक पहुँच के चलते अभियंताओं के हौसले बुलंद !

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून : सूबे की ब्यूरोक्रेसी से त्रस्त उत्तरा पंत बहुगुणा का मामला ठंडा भी नहीं पड़ा कि सूबे की  ब्यूरोक्रेसी के पेयजल निगम के तीन उन अभियंताओं पर मेहरबानी की कहानी शुरू हो गयी है जिससे सरकार विवाद में तो घिरेगी ही साथ ही उसकी एक बार और फजीहत होती तय है इतना ही नहीं सरकार के इस निर्णय से राज्य सरकार को अनावश्यक आर्थिक भार से भी गुजरना पड़ेगा इतना ही नहीं सरकार के इस निर्णय से भविष्य में उन तमाम विभागों पर भी संविलियन की दबाव की राजनीती शुरू हो जाएगी जहाँ राजनितिक और ब्यूरोक्रेटिक पहुँच वाले ऐसे कर्मचारी कभी भी और कहीं भी सरकार पर हावी होकर अपना उल्लू सीधा करते नजर आएंगे। 

गौरतलब हो कि जो संस्थान सर्वत्र विकासाय: की बात तो करता है लेकिन अपने विकास की बात पर भ्रष्ट अभियंताओं के संविलियन पर अपनी आँखे बंद कर देता है। मामला उत्तराखंड पेयजल निगम से ब्रिड़कुल  (Bridge, Ropeway, Tunnel and other Infrastructure Development Corporation) में प्रतिनियुक्ति पर गए उन तीन अभियंताओं का है जो ब्रिड़कुल की मलाई खाते -खाते अब वहीँ अपना संविलियन करने के लिए बीते दो सप्ताह से सचिवालय के उन तमाम अनुभागों से लेकर पिथौड़ागढ़ और देहरादून तक की उन तमाम कुर्सियों तक में चढ़ावा चढ़ाते-चढ़ाते अपर मुख्य सचिव की कुर्सी तक जा पहुंचे हैं। चर्चाएं तो सरे आम हैं कि चढ़ावा का प्रभाव इतना प्रभावशाली है कि जो सिस्टम उत्तरा बहुगुणा की ट्रांसफर की फाइल बीते 20 सालों तक एक कुर्सी से दूसरी कुर्सी तक नहीं पहुंचा सका और आखिरकार थक हारकर सिस्टम से आक्रोशित महिला के कोप का भाजन सूबे के मुखिया को होना पड़ा।अब उसी सिस्टम में इन चर्चित तीनों अभियंताओं के संविलियन की फाइल बुलेट ट्रेन की गति से भाग रही है। 

यहाँ चर्चा यह भी उठ रही  है कि जिन तीन अभियंता जिनकी फाइल इतनी द्रुत गति से बुलेट ट्रेन की गति की मानिंद भाग रही है वे  लोग हैं जिन्हे अभी फीता तक पकड़ना ठीक से नहीं आता लेकिन राजनीतिक और ब्यूरोक्रेटिक पहुँच के चलते अवर अभियंता से आवासीय अभियंता और प्रोजेक्ट मैनेजर तक की कुर्सी पर जा बैठे हैं।  चर्चा तो यहाँ तक है इन अभियंताओं की प्रतिनियुक्ति को लेकर न तो अभी इनके पूर्ववर्ती पेयजल निगम ने ही इनको एनओसी जारी की है और न ही सरकार का कोई ऐसा नियम  है जो इन्हे इस तरह संविलियन किया जाय।  लेकिन यहाँ जिनके पास राजनीतिक और ब्यूरोक्रेटिक पहुँच हो उसके लिए सब कुछ  संभव है जैसा कि  इनके मामले में हो रहा है वरना एक अबला नारी की फाइल की तरह इनकी फाइल इनके सेवा निवृति तक एक कुर्सी से दूसरी कुर्सी तक नहीं पहुँच पाती। 

अब बात करते हैं सरकार पर अनावश्यक व्यय भार को बढ़ाने की ,चर्चा यहाँ सरे आम है कि  जिन अभियंताओं को पेयजल निगम से ब्रिडकुल में प्रतिनियुक्ति पर लिया गया है उनके वेतंमान में मूल विभाग से ब्रिडकुल में हज़ारो रुपये का अंतर है। उदाहरण स्वरुप यदि देखा जाय जिनका वेतन उनके मूल विभाग में 30 हज़ार रुपये था सरकार को उनको ब्रिडकुल में 80 हज़ार देना पड़ रहा है।  वहीँ इनके संविलियन के बाद तो राज्य सरकार पर अतिरिक्त व्ययभार पड़ना लाजमी है लेकिन सूबे में इनकी राजनीतिक और ब्यूरोक्रेटिक पहुँच के चलते इन सब बातों को जानबूझकर नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। 

वहीँ चर्चा है कि संविलियन की फाइल चलने से पहले न तो ब्रिडकुल ने और न ही सरकार ने इनकी प्रतिनियुक्ति के दौरान के इनके काम काज की समीक्षा भी नहीं की जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि इनका ब्रिडकुल में संविलियन इतना जरुरी हो गया है। कि  इनका कामकाज उच्च कोटि का रहा है।  जिसका उदाहरण गैरसैण में बन रहा राजीव गांधी नवोदय विद्यालय है जिसके निर्माण की गुणवत्ता को लेकर क्षेत्रीय विधायक मुख्यमंत्री के समक्ष अंगुली उठा चुके हैं। कुल मिलाकर सत्ता के गलियारों से लेकर ब्रिडकुल और पेयजल निगम तक इन तीन अभियंताओं  के संविलियन का मामला चर्चा का विषय बना हुआ है।