‘हुनर से रोज़गार तक’ : सूबे के बेरोजगारों के साथ छल तो सरकार की मंशा पर पानी

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‘हुनर से रोज़गार’ कार्यक्रम बना लूट का  जरिया !

नहीं है जानकारी कितने बेरोजगारों को रोजगार मुहैया करवाया!

कार्यक्रम के समन्वयक के अपॉइंटमेंट में भी कई झोल!

राजेन्द्र जोशी

देहरादून : ‘’हुनर से रोजगार’’ कार्यक्रम उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों के बेरोजगार युवकों के लिए रोज़गार के अवसर खोजने और उन्हें रोजगार के काबिल बनाने का कार्यक्रम है, लेकिन इस कार्यक्रम के तहत बेरोजगार युवकों को रोजगार मिला होगा या नहीं लेकिन चर्चा है कि इस कार्यक्रम को संचालित करने वालों को जरुर रोजगार मिल गया और इन्होने इस कार्यक्रम से करोड़ों रुपये का चूना गढ़वाल मंडल विकास निगम के द्वारा भारत सरकार को लगाया जा रहा है। वहीँ दूसरी तरफ निगम प्रबंधन ने इस कार्यक्रम को संचालित करने वाले ठेकेदारों से आज तक यह पूछने की जहमत नहीं उठायी है कि आखिर इन्होने कितने बेरोजगारों को रोजगार मुहैया करवाया है और वे वर्तमान में कहाँ रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। उलटा निगम प्रबंधन ने उन शिकायती पत्रों को दबा डाला जिनमें इन ठेकेदारों की जांच कर पोल खोलने की बात कही गयी थी। ऐसे में अब यह सवाल भी उत्तराखंड की फिज़ाओं में तैर रहे हैं कि कहीं ‘हुनर से रोज़गार’ कार्यक्रम केवल निगम प्रबंधन और ठेकेदारों का गठ-जोड़ तो नहीं जो सूबे के बेरोजगारों को रोज़गार के लिए प्रशिक्षित करने के लिए आबंटित पैसे की बंदरबांट के लिए चलाया जा रहा है।   

मामले में चर्चा तो यहाँ तक है कि निगम प्रबंधन और ठेकेदार मिलकर कई सालों से सरकार को जमकर चूना लगा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार इस कार्यक्रम के तहत प्रति युवक 20 हज़ार रुपये राज्य सरकार को केंद्रीय निधि से आबंटित होते हैं और गढ़वाल मंडल विकास निगम इस प्रशिक्षण से लेकर युवकों को रोज़गार तक मुहैया करवाने के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य कर रही है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि हज़ारों की संख्या में बेरोजगारों को प्रशिक्षण के नाम पर करोड़ों रुपयों की बंदरबांट आज तक जारी है, लेकिन आज तक यह खोज-खबर नहीं की गयी कि आखिर इन ठेकेदारों ने कितने बेरोजगारों को आज तक रोजगार मुहैया करवाया है और वे वर्तमान में कहाँ रोजगार प्राप्त कर रहे हैं।

सूत्रों का दावा है कि जहाँ रोज़गार मुहैया करवाने और प्रशिक्षण के नाम पर प्रति बेरोजगार प्रति माह युवक 20 हज़ार रूपये ठेकेदार को दिए जा रहे हैं वहीँ प्रशिक्षण पूर्ण होने के बाद प्रति प्रशिक्षणार्थी 9 हज़ार रुपये साक्षात्कार की तैयारी के अलग से दिए जाते हैं इतना ही नहीं गोलमाल तो इतना बड़ा है कि एक ही बेरोजगार को तीन-तीन बार साक्षात्कार के पैसे भी प्रबंधन और ठेकेदार द्वारा डकार लिए जाते रहे हैं।

चर्चा तो यहाँ तक है कि वर्तमान में ‘हुनर से रोजगार’ कार्यक्रम के समन्वय के लिये जिस व्यक्ति को निगम ने 30 हज़ार रुपये प्रति माह के लिए रखा गया है उसके अपॉइंटमेंट में भी कई झोल हैं न तो निगम प्रबंधन ने किसी समाचार पत्र में इसकी विज्ञप्ति ही प्रकाशित की और न ही कोई सार्वजनिक विज्ञापन ही प्रकाशित किया गया। यहाँ भी निगम प्रबंधन ने ‘अंधा बांटे रेवड़ी अपने –अपने को दे’ वाली कहावत चरितार्थ करते हुए अपने चहेते को ही ‘हुनर से रोज़गार’ कार्यक्रम का सर्वेसर्वा बना डाला है। अवैध तरीके से रोजगार प्राप्त करने वाले इस व्यक्ति को अब निगम प्रबंधन एक लाख रुपये प्रति माह दे रहा है। जबकि चर्चा है कि इसी व्यक्ति ने अपनी पत्नी के नाम से एक संस्था बनायी है जो निगम में ‘हुनर से रोज़गार’ कार्यक्रम के तहत ठेकेदारी कर रही है और इसी संस्था के नाम से निगम प्रबंधन, ठेकेदार और यह समन्वयक जहाँ सूबे के बेरोजगारों के साथ छल कर रहे हैं वहीँ सरकार को भी करोड़ों का चूना लगाया जा रहा है।

चर्चा तो यहाँ तक है निगम प्रबंधन, ठेकेदार और इस समन्वयक ने मिलकर देश के नामी –गिरामी होटलों और अन्य संस्थानों के नाम के लैटर पैड खुद ही प्रिंट करवाए हुए हैं और प्रशिक्षण पूर्ण होने के बाद इस प्रशिक्षणार्थियों को इन्ही फर्जी लैटर पैड पर इनका फर्जी अपॉइंटमेंट लेटर थमा दिया जाता है लेकिन जब युवक किसी संस्थान में यह पत्र लेकर जाते हैं तो उन्हें वहां से साफ़ कहा जाता है कि यह पत्र उनके संस्थान का नहीं है। बेचारे गरीब और बेरोजगार युवक अपना सा मुंह लेकर एक बार फिर अपने घरों को लौट जाते हैं। लेकिन निगम प्रबंधन, ठेकेदार और इस समन्वयक का कागजी खाना पूरी तो हो ही जाती है। कहने को कागजों में ऐसे बेरोजगारों को रोजगार भी मिल जाता है और इनको ऐसे युवकों को रोजगार मुहैया करवाने के आवाज में मोटी रकम भी मिल जाती है लेकिन न तो सरकार की मंशा ही पूरी हो पाती है और न युवक को रोजगार ही मिल पाता है, लेकिन इस तिकड़ी की मौज हो रही है ।