इको टास्क फ़ोर्स पहाड़ों में खून-पसीना बहाकर लाया हरियाली

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जूनियर एक टास्क फ़ोर्स का होगा गठन : कमांडर राणा 

मसूरी और दून घाटी में इको टास्क फ़ोर्स की बदौलत है हरियाली 

राजेन्द्र जोशी 

देहरादून : उत्तराखंड के लोग विश्व पर्यावरण दिवस पर यदि डॉ. नार्मन बोलाक, अवधेश कौशल के साथ-साथ देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी और इको टास्क फ़ोर्स को आखिर क्यों याद न करें जिनकी बदौलत मसूरी की खोखली हो चुकी पहाड़ियों में आज हरियाली नज़र आती है और समूची दून घाटी आज खुलकर शुद्ध हवा में सांस ले रही है। वहीँ अब यह फाॅर्स उत्तराखंड की सुदूर सीमाओं पर बसे गांवों को हरा-भरा करने का बीड़ा उठाये हुए है जहाँ आलू ,ओगल और फाफर के सिवा कुछ नहीं होता वहां इको-टास्क फाॅर्स अखरोट और चिलगोजे का वृक्षारोपण कर वहां की आर्थिकी को नया आयाम देना चाहता है ।

अपनी कामयाबी पर इको-टास्क फ़ोर्स आखिर क्यों न करे गुमान उसने वर्ष 1992 में इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरूस्कार,1998 में वीर केसरी चन्द पर्यावरण पुरूस्कार, 2002 में वसुधा मित्र सम्मान, सीआई आई ग्रीन अवार्ड 2006-07,बीएनएचएस ग्रीन गवर्नेंन्स अवार्ड 2008 एवं अर्थ केयर अवार्ड 2012 साहित कई और पर्यावरण रक्षा पुरूस्कार प्राप्त किये हैं। 

बात वर्ष 1984 से पहले की है जब मसूरी ही नहीं बल्कि समूची दून घाटी चूने के खनन से उजाड़ी जा रही थी, हर तरफ धुल और धुंए का गुबार नज़र आता था, हर सड़क अपर गट्टूओं की आवाज लोगों के सीने को चीरती हुई नजर आती थी, मसूरी से लेकर देहरादून की हर सड़क पर चूने के पत्त्थरों का पहाड़ नज़र आता था कुछ लोग मालामाल हो रहे थे तो कुछ लोग इन खदानों की धूल -मिट्टी में अपनी जिंदगी तबाह होते देख रहे थे। इसी दौरान डॉ। अवधेश कौशल ने उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर मसूरी सहित दून घाटी क्षेत्र में किये जा रहे खनन को बंद करने की बात कही, जिसका संज्ञान लेते हुए मसूरी व दून घाटी में चूने के खदान बंद किये गए।

अब बात आती है इस घाटी को कैसे हरा भरा किया जाय और यहाँ की खोखली और वनस्पति विहीन हो चुकी पहाड़ियों पर कैसे हरियाली लायी जाय तो इसका जिम्मा वन विभाग को दिया गया लेकिन वन विभाग ने उस गति व उस तन्मयता से यह काम नहीं किया इसी बीच तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरागांधी का मसूरी दौरा का कार्यक्रम बना जिनके साथ डॉ। नार्मन बोलाक भी थे, हेलीकाप्टर से पूरे इलाके का दीदार प्रधानमंत्री को कराया गया और वे लौट गयी लेकिन उनके पीछे-पीछे यहाँ की धरातलीय रिपोर्ट और फोटोग्राफ भी प्रधानमंत्री कार्यालय पहुँच गए जिसमें वन विभाग ने पूरी पहाड़ी को हरे रंग में रँगे होनेकी वास्तविकता थी।

कहा जाता है उस समय वन विभाग ने इस इलाके में पेड़ तो कम लगाये शेष पहाड़ियों को प्रधानमंत्री के दायरे से पहले हरे रंग से पोत दिया था । इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री से सोचा कि यह कार्य करना वन विभाग के बस की बात नहीं तभी उन्होंने भारतीय सेना से कुछ अधिकारियों को लेकर एक दिसम्बर 1982 को इको टास्क फ़ोर्स का गठन किया, जिसने वर्ष 1984 से लेकर अब तक मसूरी सहित दून घाटी की रंगत में चार चाँद लगाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। आज जो हरियाली मसूरी और उसके आसपास की पहाड़ियों पर दिखायी देती है वह सब इको टास्क फ़ोर्स के जवानों और अधिकारियों के खून- पसीने से सींच कर जगाये गए पेड़ों की बदौलत है। इको टास्क फ़ोर्स ने राजपुर मालसी से लेकर मसूरी और हाथी पांव तक के लगभग 34 हज़ार हेक्टेयर इलाके को वर्ष 1984 से लेकर 1994 के बीच हरित किया है।

एक दिसम्बर 1982 को गठित इको टास्क फ़ोर्स को तत्कालीन उत्तरप्रदेश सरकार के वन विभाग ने मोहंड में प्रशिक्षित किया, अब इसको गढ़वाल रायफल्स 127 (टीए) इको टास्क फ़ोर्स कहा जाने लगा। इको टास्क फ़ोर्स को मसूरी सहित आस-पास के इलाके को हरित करने के लिए छह साल का लक्ष्य दिया गया था। लेकिन इको टास्क फ़ोर्स ने दो साल के दौरान ही कड़ी मेहनत के दम पर इस पूरे इलाके को वृक्षारोपण कर पाट दिया जो धीरे-धीरे घने जंगल का रूप लेने लगे। इसी बीच इको टास्क फ़ोर्स को मसूरी इलाके की 400 चूने की खदानों को बंद करने और वहां वृक्षारोपण करने का काम दिया गया। यहाँ इको टास्क फ़ोर्स ने लगभग 18 से 20 लाख वृक्षों का रोपण कर इस इलाके को भी हरा भरा कर दिखाया।

इको टास्क फ़ोर्स के कमांडर कर्नल राणा ने बताया कि सिर्फ वृक्षारोपण से ही जंगल नहीं बन जाते , प्राकृतिक जंगल बनाने के किये उस इलाके का पूरा इको सिस्टम विकसित करना होता है। जिसमे पक्षी, तितली, सांप आदि सभी का वास होना चाहिए क्योंकि इनके बिना जंगल की सोचना बेकार है क्योंकि यही जंगल का वातावरण भी बनाते हैं। उनका कहना है कि इको टास्क फ़ोर्स अब इलाके के लोगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए मिश्रित वन पर काम कर रहा है। जहाँ ग्रामीणों को ईंधन की लकड़ी भी हो तो फल और फूल भी हों तो जानवरों के लिए घास पत्ती भी हो तो जंगली जानवरों के लिए रिहायश भी।

कर्नल राणा ने बताया कि अब इको टास्क फ़ोर्स उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी वृक्षारोपण कर उसे हरित इलाके में तब्दील करने पर जुटा है। उन्होंने बताया कि सैन्य प्रमुख विपिन रावत के निर्देश पर नीति घाटी में मलारी से लेकर बम्पा तक के इलाके में अखरोट व चिलगोजे का वृक्षारोपण कर रहा है इससे जहाँ इलाके के लोगों की आमदनी बढ़ेगी वहीँ इलाके के पर्यावरण पर भी इसका असर पड़ेगा।

चमोली जिले का कार्यभार देख रहे लेफ्ट. कर्नल संजय गुप्ता ने बताया कि मलारी घाटी में ग्रामीण सहभागिता से ग्रामीणों को तीन-तीन पेड़ कागजी अखरोट व चिलगोजे के दिए गए हैं जिन्हें ग्रामीण बहुत ही प्रेम से अपने खेतों में रोपित भी कर रहे हैं, उनका कहना है ग्रामीणों का प्रकृति प्रेम व पौधों के प्रति लगाव को देखते हुए हमारा भी उत्साह वर्धन होता है।

इको टास्क फ़ोर्स के कमांडर कर्नल राणा ने बताया वे कहते हैं कि जो भी सैनिक जिनकी उम्र अभी 40 के आसपार है और वे सेना से पेंशन लेकर घर आ गए हैं और उनमे कुछ कर गुजरने का जज्बा है उन्हे इको टास्क फ़ोर्स अपने साथ लेने को तैयार है साथ ही उन्होंने बताया कि इको टास्क फ़ोर्स एक जूनियर इको टास्क फ़ोर्स का गठन भी करने जा रहा है जिसमे स्कूली बच्चों को शामिल किया जायेगा ताकि वे भी अपने पर्यावरण से जुड़ सकें, और पेड पौधों की रक्षा के साथ साथ वृक्षारोपण में भी फ़ोर्स का साथ दे सकें।