कर्णप्रयाग सीट पर चुनाव स्थगित होने के कारण इस बार जादुई संख्या हो गई 35
देहरादून : उत्तराखंड में किसी एक दल की हवा या अंडर करंट जैसा कुछ नहीं दिखाई दे रहा है। स्थानीय मुद्दे और प्रत्याशी का चुनाव निर्णायक साबित होंगे। एक बार फिर किसी भी दल को बहुमत मिलता नहीं दिख रहा है। बसपा जैसे छोटे दल और जीतकर आने वाले निर्दलीय किंगमेकर की भूमिका निभा सकते हैं।
और न ही उत्तराखंड में कांग्रेस या भाजपा में से किसी को भी स्पष्ट बहुमत मिलता नहीं दिखाई दे रहा है। दोनों बड़े दलों में एक-एक सीट पर कांटे की टक्कर है। प्रदेश में एक बार फिर निर्दलीय और बसपा जैसे छोटे दल किंग मेकर की भूमिका में आते दिख रहे हैं। चुनाव एक दम सामने हैं, कुछ घंटों का ही वक्त बचा है। हर सीट पर कांटे का मुकाबला है।
अधिकतर सीटों पर कांग्रेस भाजपा में सीधी टक्कर है। लेकिन कांग्रेस और भाजपा के बागियों ने कईं सीटों पर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। हरिद्वार और उधमसिंहनगर में कांग्रेस और भाजपा को बसपा से भी मुकाबला करना पड़ रहा है। गढ़वाल और कुमाऊं में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही कईं सीटों पर बागियों का सामना कर रहे हैं। कुछे-एक सीटों को छोड़ दें तो अधिकतर सीटों पर कांटे का मुकबला है। इससे पता चलता है यहाँ किसी की एक तरफा लहर नहीं है।
जादूई आंकड़े से दूर कांग्रेस और भाजपा, निर्दलीय बनते दिख रहे किंगमेकर उत्तराखंड में कांग्रेस या भाजपा में से किसी को भी स्पष्ट बहुमत मिलता नहीं दिख रहा है। दोनों बड़े दलों में एक-एक सीट पर कांटे की टक्कर है। प्रदेश में एक बार फिर निर्दलीय और बसपा जैसे छोटे दल किंग मेकर की भूमिका में आते दिख रहे हैं।
जादूई आंकड़ा होगा 35
उत्तराखंड विधानसभा में कुल 70 सीटें हैं। यानी बहुमत के लिए 36 का जादूई आंकड़ा चाहिए। लेकिन इस बार 69 विधानसभा सीटों पर चुनाव हो रहा है। चमोली जिले की कर्णप्रयाग सीट पर बसपा प्रत्याशी की सड़क दुर्घटना में मौत हो जाने के बाद इस सीट पर चुनाव स्थगित कर दिया गया है। इस वजह से अब जादूई संख्या 35 होगी। यानी उत्तराखंड में सरकार बनाने के लिए जो दावा पेश करेगा उसके पास 35 का आंकड़ा होना चाहिए।
तीसरी विधानसभा की ऐसी थी तस्वीर…
2012 में तीसरी विधानसभा विधानसभा के चुनाव हुए और मतदाताओं ने पूर्ववर्ती भाजपा सरकार को नकारते हुए कांग्रेस को बढ़त दी। चुनाव नतीजों के तुरंत बाद 70 सदस्यों की विधानसभा की तस्वीर कुछ इस तरह थी।
कुल सीट: 70
कांग्रेस- 32 विधायक
बीजेपी- 31 विधायक
बसपा- 3 विधायक
यूकेडी- 1 विधायक
निर्दलीय- 3 विधायक
गढ़वाल, कुमाऊं और मैदान का सियासी गणित
उत्तराखंड में विधानसभा की 70 विधानसभा सीटें हैं। जिनमें गढ़वाल रीजन में 41 और कुमाऊं की 29 विधानसभा सीटें शामिल हैं। इसमें भी गढ़वाल के मैदानी जिले हरिद्वार और कुमाऊं के उधमसिंह नगर में कुल मिलाकर 20 सीटें हैं।
गढ़वाल, कुमाऊं में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीटों का बंटवारा होता रहा है। बसपा भी किंग मेंकर की भूमिका में रही है। 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में बसपा को 7 सीटें मिली थी तो 2007 के दूसरे चुनाव में बसपा को सर्वाधिक 8 सीटें हासिल हुई थी। 2012 में बसपा को हरिद्वार में 3 सीटें पर जरूर सिमट गईं, लेकिन बसपा को करीब 12 फीसदी मत मिले थे। कम सीटों के बावजूद बसपा उत्तराखंड में एक किंगमेकर की भूमिका में रही है।
किस दल की क्या है स्थिति
देवभूमि में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच है। दोनों दल बारी-बारी से उत्तराखंड में सरकार बनाते रहे हैं। 2002 से अभी तक उत्तराखंड में किसी की भी सरकार रिपीट नहीं हुई है। यह तथ्य भाजपा को राहत देने वाला है, क्योंकि इस वक्त राज्य में कांग्रेस की सरकार है। मायावती की बहुजन समाज पार्टी केवल उत्तराखंड में सम्मान जनक मत प्रतिशत हासिल करती रही है।
गढ़वाल और कुमाऊं में एक-एक सीट पर जोरदार मुकाबला चल रहा है। बागियों ने भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस की भी हालत पतली कर दी है। पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के नेतृत्व में कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में शामिल हुए 14 बागियों को भाजपा को टिकट देना पड़ा। यानी 14 सीटों पर भाजपा को अपने परंपरागत उम्मीदवारों के टिकट काटने पड़े। इनमें से कईं सीटों पर भाजपा के घोषित उम्मीदवारों को बागी उम्मीदवारों का सामना करना पड़ रहा है।
पौड़ी की कोटद्वार सीट को देखें। यहां कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में आए हरक सिंह रावत ताल ठोक रहे हैं। उनका मुख्य मुकाबला कांग्रेस के सिटिंग विधायक और कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत से है। यहां से भाजपा उम्मीदवार में तैयारी कर रहे शैलेंद्र रावत का टिकट काट दिया गया। रावत ने भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया। पौड़ी की ही यमकेश्वर सीट पर भाजपा ने अपनी सिटिंग विधायक विजया बर्थवाल का टिकट काटकर पूर्व सीएम बीसी खंडूरी की बेटी ऋतु खंडूरी को टिकट दे दिया गया। खुद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अल्मोड़ा की रानीखेत सीट पर पार्टी भीतर घात का सामना कर रहे हैं।
भीतर घात को लेकर कुमाऊं और गढ़वाल की कुछ सीटों पर कांग्रेस की हालत भी कुछ ऐसी ही है। वहीँ कांग्रेस ने भाजपा से आए 7 लोगों को टिकट दिए हैं। मसलन नैनीताल में भीमताल सीट पर कांग्रेस ने राम सिंह कैडा का टिकट काटकर भाजपा से आए दान सिंह भंडारी को उम्मीदवार बनाया। कैडा ने वहां से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार ताल ठो दी है।
इसके अलावा सेफ सीट के चक्कर में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को देहरादून की सहसपुर से उतार दिया गया। इसके बाद सहसपुर से कांग्रेस के आर्येन्द्र शर्मा ने बगावत कर बतौर निर्दलीय ताल ठोक दी। माना जा रहा है कि नतीजा यहां अप्रत्याशित हो सकता है। गढ़वाल और कुमाऊं रीजन कांग्रेस और भाजपा एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर भीतरघात का सामना कर रही हैं।
कु़माऊं में कांग्रेस तो गढ़वाल में भाजपा कुछ आगे !
इसके बावजूद माना जा रहा है कि कुमाऊं में पहाड़ की सीटों पर कांग्रेस को थोड़ी बढ़त मिल सकती है। गौरतलब है कि सीएम हरीश रावत कु़माऊं के अल्मोड़ा जिले से हैं। माना जाता है कि कु़माऊं में हरीश रावत के प्रति एक सहानुभूति काम कर सकती है। वहीँ यदि निर्दलीयों ने खेल न बिगाड़ा तो गढ़वाल रीजन में भाजपा बेहतर परफार्म कर सकती है। देहरादून की 10 सीटों को मिलाकर गढ़वाल में कुल 30 सीटें हैं।
निर्णायक होंगी मैदान की सीटें
कांग्रेस हो या भाजपा जो भी हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर की सीटों पर निर्णायक बढ़त लेगा, वही बहुमत के करीब पहुंचेगा। हरिद्वा की 11 ओर ऊधमसिंहनगर की 9 सीटों पर बसपा को भी अच्छा-खासा वोट मिलता है। हरिद्वार में अगर बसपा अच्छा करती है तो इसका सीधा-सीधा नुकसान कांग्रेस को और फायदा भाजपा को होगा। यहां बसपा की ताकत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 2002 के विधानसभा चुनाव में मैदान में बसपा को 07 सीटें मिली थी। 2007 में बसपा ने 08 और 2012 के चुनाव में 03 सीटें हासिल की थी।
मात्र आधे फीसदी मत प्रतिशत से हो जाता है चुनावी खेल
उत्तराखंड में 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करीब आधा फीसदी मत प्रतिशत (0।66 प्रतिशत) भाजपा से ज्यादा मिला था। इसी के चलते कांग्रेस 32 सीटें लेकर बड़े दल के रूप में सामने आई थी। कांग्रेस को 33।79 और भाजपा को 33।13 फीसदी मत हासिल हुए थे।
इससे समझा जा सकता है कि उत्तराखंड में दो दलों के बीच मुकाबला कितन कड़ा होता है। इस बार दोनों दल बागियों से जूझ रहे हैँ। कुछेक सीटों पर निर्दलीय मुकाबले में भी दिखाई दे रहे हैं। राज्य में हो रहे चौथे विधानसभा चुनाव में एक बार फिर किसी भी दल को बहुमत मिलता नहीं दिख रहा है। बसपा जैसे छोटे दल और जीतकर आने वाले निर्दलीय किंगमेकर की भूमिका में एक बार फिर आ सकते हैं।