कोबरापोस्ट ने खोली मीडिया हॉउसों की पोल, पैसे के एवज़ में ख़बरें छापने को राज़ी दिखे देश के कई मीडिया हाउस

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अपनी बड़ी तहकीकत में कोबरापोस्ट ने देश के कई मीडिया संस्थानों को पैसे के बदले हिंदुत्व का एजेंडा चलाने को सहमत होते पाया है। जिससे की चुनाव में लाभ पाने के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण भी हो सकता है। इसके अलावा ये संस्थान राजनीतिक विरोधियों को बदनाम करने के लिए तत्पर दिखे। इन संस्थानों ने पैसों के लिए इस तरह का दुर्भावनापूर्ण मीडिया campaign चलाने की बात कही।

नई दिल्ली: देश के क़ानून एवं न्याय, Information and Technology मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने 21 मार्च 2018 को ट्वीट किया, “हम बोलने की आज़ादी और सोशल मीडिया पर खुले विचारों के सम्प्रेषण का समर्थन करते हैं लेकिन सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर अवांछनीय तरीके से चुनावों को प्रभावित करने के प्रयासों को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा”। जी हाँ कुछ इसी तरह की सच्चाई कोबरापोस्ट की तहकीकत Operation 136 दर्शाती है जिसमें कई भारतीय मीडिया हाउस पैसे के बदले कंटैंट से समझौता करने के लिए तैयार दिखे फिर चाहे बात इलैक्शन के दौरान हिन्दुत्व का प्रचार या फिर ध्रुवीकरण की हो। हर चीज़ के लिए इन मीडिया प्रतिष्ठानों के लोग सहमत हो गए। वरिष्ठ पत्रकार पुष्प शर्मा की तहकीकत के दौरान इन तमाम मुद्दों पर मीडिया प्रतिष्ठान जिसमे प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल जैसे प्लैट्फॉर्म के ऊंचे पदों पर बैठे लोग न सिर्फ तैयार थे बल्कि मोटी रकम के बदले इस सुनियोजित योजना को जोकि एक खुल्लमखुल्ला साम्प्रदायिक मीडिया कैम्पेन था को चलाने और सफल बनाने के लिए सैकड़ों रास्ते भी बताए।

शर्मा ने अपना एजेन्डा चलवाने के लिए मीडिया प्रतिष्ठानों के ऊंचे पदों पर बैठे लोगो को अच्छी ख़ासी रकम देने की पेशकश की। इस एजेंडा में:

पहले चरण में हिन्दुत्व के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए विशिष्ट रूप से निर्मित धार्मिक प्रोग्राम चलाना।
उसके बाद मुहिम को और धारदार बनाने के लिए सांप्रदायिक रंग देना जिस में विनय कटियार, उमा भारती और मोहन भागवत जैसे हिंदुत्व विचारधारा से जुड़े लोगों के भाषणों का प्रचार शामिल है।
इलैक्शन के नजदीक आने पर कैम्पेन के तहत राहुल गांधी, मायावती और अखिलेश यादव जैसे विपक्षी नेताओं पर पप्पू, बुआ और बबुआ जैसे अशोभनीय शब्दों का इस्तेमाल कर व्यंगात्मक प्रोग्राम चलाना भी शामिल है।
मीडिया प्रतिष्ठानों को ये कैम्पेन अपने तमाम प्लेटफार्म जैसे प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, रेडियो और डिजिटल जिसमें ई न्यूज़ पोर्टल, ई पेपर, वेबसाइट, फ़ेसबूक, ट्विटर जैसे सोश्ल मीडिया पर चलाना है।

ये तमाम बातें आईपीसी की धाराओं के तहत दंडनीय अपराध है। इसके अलावा ये Prevention of Money Laundring Act 2002, Representation of the People Act 1951, Election Commission of India के Conduct of Election Rules 1961, Companies Act 1956, Income Tax Act 1961, Consumer Protection Act 1986 और Cable Television Network Rules 1994 का खुला उल्लंघन है। साथ ही ये तमाम कारनामे Norms and Journalistic Conduct of the Press Council of India जोकि 1978 में भारतीय संसद द्वारा प्रैस के watchdog के रूप में स्थापित किया गया था का भी खुले तौर पर उल्लंघन है।

ये तहकीकत लोकतन्त्र के चौथे स्तम्भ और मीडिया को लग चुके रोग और गोरखधंधे की न सिर्फ सूचक है बल्कि ये भी दर्शाती है कि किस तरह भारतीय मीडिया आज sale पर है। बातचीत के दौरान सामने आए तमाम पहलुओं का सार कुछ इस तरह है:

– ये अध्यात्म और धार्मिक प्रवचनों की आड़ में हिंदुत्व को बढ़ावा देने के लिए तैयार हो गए जो Press Council of India की guidelines का खुला उल्लंघन है।
– ये ऐसा कंटैंट चलाने को तैयार हो गए जोकि इलैक्शन को धार्मिक आधार पर तरंगित कर सकता है।
– ये सत्ताधारी पार्टी को फ़ायदा पहुंचाने और विरोधी पार्टी के नेताओं की छवि खराब करने के लिए बदनाम करने वाला कंटैंट चलाने के लिए तैयार हो गए।
– इनमें से काफी संस्थान इस काम के लिए रकम कैश में भी लेने को तैयार हो गए जोकि Prevention of Money Laundring Act 2002 के तहत साफ तौर पर मनी laundering है।
– कई संस्थानों के मालिक या फिर अधिकारीयों ने आरएसएस से अपने जुड़ाव की बात मानी या फिर अपना झुकाव पहले से ही हिंदुत्व की तरफ होने की बात कहकर खुशी खुशी इस अभियान को चलाने की बात कही। यानि पत्रकारिता के मूल सिद्धांत निष्पक्षता से समझौता। ये खुले आम conflict of interest है।
– कई मीडिया संस्थान सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में स्टोरी लिखने के लिए तैयार हो गए जोकि खुले तौर पर Representation of the People Act 1951 का उल्लंघन है।
– इस काम के लिए कई मीडिया संस्थान ना सिर्फ advertorials चलाने बल्कि उन्हे खुद विकसित करने को भी तैयार हो गए।
– लगभग सभी मीडिया संस्थान जिसमें प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, रेडियो और डिजिटल जिसमें ई न्यूज़ पोर्टल, ई पेपर, वेबसाइट और सोश्ल मीडिया जैसे फ़ेसबूक, ट्विटर पर इस अभियान को चलाने के लिए तैयार दिखे।
– कुछ मीडिया संस्थान पत्रकारों के जरिए ना सिर्फ मीडिया मैनेजमेंट के लिए तैयार हुए बल्कि दूसरे संस्थानों के पत्रकारों के द्वारा भी सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में खबरें कराने की बात कही।
– कुछ मीडिया संस्थानों के लोगों ने खुले तौर पर स्वीकार किया कि वो सरकार के कहे मुताबिक काम करते है और अपने व्यापारिक संबंधो की वजह से सरकार को नाराज़ करने का जोख़िम नहीं उठा सकते।
– कई संस्थान राहुल गांधी जैसे नेताओं के चरित्र हनन के लिए कंटैंट बनाने और प्रचार करने को तैयार हो गए।
इन मीडिया संस्थानों में कुछ कैबिनेट मंत्री अरुण जेटली, मनोज सिन्हा, जयंत सिन्हा, मेनका गांधी और उनके बेटे वरुण गांधी के खिलाफ स्टोरी चलाने के लिए भी राजी हो गए।
– कुछ संस्थान NDA सरकार में बीजेपी की सहयोगी पार्टियों के बड़े नेताओं जैसे अनुप्रिया पटेल, ओमप्रकाश राजभर और उपेन्द्र कुशवाह के खिलाफ भी स्टोरी चलाने के लिए तैयार हुए।
– कुछ मीडिया संस्थान प्रशांत भूषण, दुष्यंत दवे, कामिनी जयसवाल और इंदिरा जय सिंह जैसे कानूनी जानकार और नागरिक समाज के बीच जाने-माने चेहरों को बदनाम करने के लिए भी सहमत दिखे।
– कुछ संस्थानों ने आंदोलन करने वाले किसानों को माओवादियो के तौर पर प्रस्तुत करने के लिए भी सहमति जताई।

पत्रकार पुष्प शर्मा श्री मद भागवत गीता प्रचार समिति उज्जैन के प्रचारक बनकर इन मीडिया संस्थानों के लोगों से मिले और खुद का नाम आचार्य छत्रपाल अटल बताया। साथ ही शर्मा ने खुद को आईआईटी दिल्ली और आईआईएम बैंग्लोर का पास आउट बताया। खुद के ऑस्ट्रेलिया में बसने और स्कॉटलैंड में गेमिंग कंपनी चलाने की बात कहकर हिंदुस्तान में हर साल चंद महीने हिंदुत्व के प्रचार प्रसार के लिए काम करने की बात भी कही। कुछ जगहों पर शर्मा ने खुद को ओम प्रकाश राजभर की सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी की मध्य प्रदेश इकाई का प्रदेश अध्यक्ष और प्रभारी भी बताया। इसमें दिलचस्प बात ये है कि पुष्प को ये ज़िम्मेदारी खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने ही दी। मध्य प्रदेश इकाई का प्रदेश अध्यक्ष और प्रभारी बनाने के लिए ओम प्रकाश राजभर ने पुष्प को अपने लड़के अरविंद से मिलने के लिए बोला। अरविंद ने मुलाक़ात के दौरान पुष्प की नियुक्ति के लिए पचास हज़ार रुपए भी लिए।

शर्मा ने कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनावों के अलावा 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए देश भर के मीडिया संस्थानों के लोगों से मुलाक़ात की और अपने कैम्पेन को चलाने की बात की। इस कैम्पेन का मुख्य हिस्सा पैसे के बदले प्लांट खबर चलाकर काँग्रेस, जनता दल, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी की छवि धूमिल करना भी था। कैम्पेन में शुरुआत के तीन महीने सॉफ्ट हिंदुत्व का पैड कंटैंट चलाने के बाद खुले तौर पर सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में 2019 के लिए माहौल बनाना शामिल था। सेंपल के तौर पर शर्मा ने कुछ जिंगलस मीडिया संस्थानों के लोगो को सुनाए। ताज्जुब की बात ये है कि इन जिंगलस को कुछ एफ़एम स्टेशन ने ही तैयार किया है।

ये जिंगलस साफ तौर पर छवि खराब करने वाले, बदनाम करने वाले और मिथ्या थे जो जनता के सामने संबन्धित नेता की छवि को कमजोर साबित कर रहे थे। बातचीत के दौरान पुष्प शर्मा ने कहा कि इस काम के लिए उनके संगठन ने सिर्फ कर्नाटक इलैक्शन के लिए 742 करोड़ रुपए का बजट रखा है और आने वाले जनरल इलैक्शन के लिए बजट हजारों करोड़ रुपए है। इस बजट के सामने लगभग सभी मीडिया प्रतिष्ठानों के ऊंचे पदों पर बैठे लोग नतमस्तक हो गए और शर्मा के बताए एजेंडा को चलाने को तैयार दिखे।

प्रैस और ख़बर समर्थक पेरिस की रिपोर्टेर्स सेंस फ़्रोंटिएर्स यानि आरएसएफ़ जिसे संयुक्त राष्ट्र में सलाहकार का दर्जा प्राप्त है और दुनियाभर की 18 पत्रकारिता क्षेत्र की संस्थाए जिससे जुड़ी है ने साल 2017 में भारत को वर्ल्ड प्रैस फ्रीडम इंडेक्स में 136वें पायदान पर रखा है। इसीलिए इस ख़बर को हमने ऑपरेशन 136 नाम दिया।

यहां दिलचस्प बात ये है कि स्टोरी release होने से चंद दिन पहले पुष्प शर्मा ने कई मीडिया हाउसों से अपने एजेंडा में कुछ और मांगे शामिल की। अपने अभियान के दौरान पुष्प ने इन मीडिया हाउसों को न केवल केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली, मनोज सिन्हा, जयंत सिन्हा, मेनका गांधी और उनके बेटे वरुण गांधी के खिलाफ स्टोरी चलाने के लिए कहा बल्कि बीजेपी के गठबंधन सहयोगियों के प्रमुख नेताओं के खिलाफ भी खबरें चलाने के लिए बोला। पुष्प ने इन्हें कुछ ऐसी कहानियां प्रकाशित करने के लिए भी कहा ताकि देशभर में आंदोलन करने वाले किसानों को माओवादियों द्वारा उकसाए हुए दिखाया जा सके। इसके बाद पुष्प ने इन्हें प्रशांत भूषण, दुष्यंत दवे, कामिनी जयसवाल और इंदिरा जय सिंह जैसे वकील, नागरिक स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ने वालों को भी target करने को बोला। आखिर में पुष्प ने कुछ संस्थानों के लोगों से ये भी मांग की कि वो न्यायपालिका के फैसलों पर प्रश्नचिन्ह लगाकर उन्हें लोगों के सामने ऐसे प्रस्तुत करें ताकि लोगों की नज़रो में ये फैसलों संदिग्ध और विवादास्पद बने रहें। आप भी सोच रहे होंगे कि जाहिर तौर पर हर मीडिया हाउस ने ऐसी शर्तें मानने से इनकार कर दिया होगा लेकिन सच्चाई ये है कि ऐसा नहीं हुआ। क्योंकि पत्रकारिता के इस दौर में कुछ भी संभव है। यहां दोहरी चाल चली जाती है, बस इन्हें पैसों का दम दिखाइए फिर जिस मर्जी नेता या पार्टी को बदनाम करा दीजिए। तहकीकात के दौरान कुछ विशिष्ठ समूहों और लोगों के नामों का इस्तेमाल किया गया है जो पूरी तरह आकस्मिक थे और सच्चाई को सामने लाने के लिए जरूरी थे।

ऑपरेशन 136 के पहले भाग में हमने India TV, Dainik Jagaran, Hindi Khabar, SAB Group, DNA (Daily News and Analysis), Amar Ujala, UNI, 9X Tashan, Samachar Plus, HNN 24*7, Punjab Kesari, Swatantra Bharat, ScoopWhoop, Rediff.com IndiaWatch, Aj Hindi Daily और Sadhna Prime News से जुड़े लोगों की बातचीत के प्रमुख अंश दिखाए है।

दुनिया में प्रैस की स्वतंत्रता के मामले में भारत का स्थान 136 वां है। इस तहकीकत के बाद ये साफ हो गया है कि कैसे देश भर के मीडिया प्रतिष्ठान के ऊंचे पदों पर बैठे लोग पेड़ न्यूज़ को बढ़ावा देकर लोकतंत्र को खतरे में डाल रहे है। देश के 183 मिल्यन घरों में टीवी है यानि जनसंख्या के 42 प्रतिशत लोग टीवी देखते है। 39 प्रतिशत लोग अख़बार पढ़ते है। 730 मिल्यन मोबाइल उपभोगता है और 42 मिल्यन उपभोगता इंटरनेट का इस्तेमाल करते है। इसके अलावा सैकड़ों प्राइवेट रेडियो स्टेशन है और 64 प्रतिशत भारतीय एफ़एम रेडियो सुनते है। इन आकड़ों पर नज़र दौड़ाए तो भारतीय मीडिया की पहुँच बहुत व्यापक और गहरी है। निश्चय ही वह जनमानस को प्रभावित करने में कारगर है।

90 के दशक के अयोध्या आंदोलन से लेकर 2002 के गुजरात दंगों तक PCI, Editors Guild of India और PUCL में तमाम ऐसे साक्ष्य है जहां कुछ मीडिया संस्थानों ने सांप्रदायिक पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग की। पैड न्यूज़ मामले में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चौहान के अलावा मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री नरोत्तम मिश्रा, बाहुबली डीपी यादव की पत्नी और उत्तर प्रदेश से विधायक रही उमलेश यादव दंडित हो चुके है। 2012 के विधान सभा चुनावों के दौरान इलैक्शन कमिशन ने पैड न्यूज़ के 1200 मामले दर्ज किए थे। लॉं कमिशन भी पैड न्यूज़ से जुड़े मामलों की रोज़ाना सुनवाई का पक्षधर है ताकि देश की लगभग डेढ़ अरब आबादी को पैड न्यूज़ के जहर से बचाया जा सके।

ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या सरकार या न्यायपालिका प्रेस की विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए और इनके द्वारा किए जाने वाले झूठ और दुष्प्रचारों पर कोई ठोस कदम उठाती है ताकि भारतीय मीडिया को समाज में सम्मान मिल सके। हालांकि इस काम के लिए पहले ही काफी देर हो चुकी है।

तहकीकात के दौरान कुछ विशिष्ठ समूहों और लोगों के नामों का इस्तेमाल किया गया है जो पूरी तरह आकस्मिक थे और सच्चाई को सामने लाने के लिए जरूरी थे।

कोबरापोस्ट ने विभिन्न मीडिया संस्थान और उनके उन अधिकारियों के नाम जिनसे बात की

  1. इंडिया टीवी – जितेन्द्र कुमार, डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट (सेल्स), (नोएडा)
  2. दैनिक जागरण– संजय प्रताप सिंह, एरिया मैनेजर (बिहार, झारखंड, ओडिशा)
  3. सब नेटवर्क (अधिकारी ब्रदर्स टेलीविज़न नेटवर्क)- कैलाशनाथ अधिकारी, मैनेजिंग डायरेक्टर (मुंबई)
  4. ज़ी सिनर्जी एंड डीएनए– रजत कुमार, मुख्य राजस्व अधिकारी
  5. हिंदी खबर– अतुल अग्रवाल, डायरेक्टर एंड एडिटर इन चीफ (नोएडा)
  6. 9एनएक्स– प्रदीप गुहा, सीईओ (गुड़गांव)
  7. समाचार प्लस– अमित त्यागी, सीनियर सेल्स (नोएडा)
  8. एचएनएन लाइव– अमित शर्मा, सीईओ, (देहरादून, उत्तराखंड)
  9. पंजाब केसरी– सुनील शर्मा
  10. स्वतंत्र भारत– संजय सिंह श्रीवास्तव, एडिटर एंड बिजनेस हेड (लखनऊ)
  11. स्कूप व्हूप: सात्विक, सीईओ (दिल्ली)
  12. रेडिफ डॉट कॉम– विराज खानधादिया, एसोसिएट डायरेक्टर एड सेल्स (मुंबई)
  13. आज (हिंदी डेली)– हरिंदर सिंह साहनी, बिजनेस हेड/ब्रांच हेड
  14. साधना प्राइम न्यूज़– आलोक भट्ट, डायरेक्टर (लखनऊ)
  15. अमर उजाला– हिमांशु गौतम, बिजनेस हेड (दिल्ली)
  16. यूएनआई– नरेंद्र कुमार श्रीवास्तव, ब्यूरो प्रमुख (दिल्ली)