मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत का भ्रष्टाचार पर ”मास्टर स्ट्रोक”

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  • भ्रष्टाचारी घेरने के लिए इकट्ठे हो रहे हैं, मगर वे घेर नहीं सकते : त्रिवेंद्र 
  • अब प्रदेश में भ्रष्टाचारियों की खैर नहीं 

राजेन्द्र जोशी 

DEHRADUN : भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करने वाले मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत अब सूबे को भ्रष्टाचार मुक्त करने को लेकर फुल फार्म में हैं। भ्रष्टाचार पर  बीते डेढ़ साल से चोट कर रहे मुख्यमंत्री की कार्यशैली पर अब प्रदेशवासी जहाँ संतोष व्यक्त कर रहे हैं वहीँ वे खुश नज़र आ रहे हैं। यही कारण है कि सूबे में अब तक पैर जमा चुके भ्रष्टाचारी अधिकारी से लेकर नेताओं तक में दहशत का माहौल है और वे अपना बिस्तर समेटने की तैयारी में हैं। 

प्रदेश के बुद्धिजीवियों का कहना है कि बीते 18 साल के दौरान जितने भी मुख्यमंत्री इस राज्य में आये हैं उन्हें दलालों और माफियाओं ने देहरादून से लेकर दिल्ली तक के बाज़ार में बेच डाला लेकिन वर्तमान मुख्यमंत्री के पास उनके इन डेढ़ साल के कार्यकाल में मुख्यमंत्री को सरे बाजार बेचने की बात तो दूर न तो कोई दलाल और न ही कोई माफिया ही मुख्यमंत्री तक पहुँचने की हिम्मत नहीं जुटा पाया है। भ्रष्टाचार हटाने की मुहीम को लेकर मुख्यमंत्री के फैसलों पर यदि नज़र दौड़ाई जाय तो भ्रष्टाचार को लेकर उनके सामने अब तक जितने भी मामले आये हैं उन्होंने उनपर ”मास्टर स्ट्रोक” मारते हुए यह सन्देश देने की कोशिश की है कि अब प्रदेश में भ्रष्टाचारियों की खैर नहीं। 

गौरतलब हो कि बीते डेढ़ साल से विपक्ष मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत की सरकार बनते ही उनके भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के बयान पर टिप्पणियां करते रहे हैं।  लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत चुपचाप अपने काम में लगे रहे और उन्होंने विपक्ष के तंजो को कोई तवज्जो नहीं दी। लेकिन अब मुख्यमंत्री फ्रंट फुट पर आकर भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात का सन्देश देने लगे हैं।  एनएच -74 के मामले में अब तक 20 के लगभग अधिकारियों और कर्मचारियों के जेल जाने के बाद अब सूबे के दो आईएएस अधिकारियों तक जब राष्ट्रीय राज मार्ग -74 के मुआवजे घोटाले की जांच की आंच पहुंची तो एक बारगी तो सूबे के लोगों ने सोचा कि राज्य के अस्तित्व में आने से लेकर आज तक के इन 18 वर्षों में किये गए घपले-घोटालों की जांच की तरह यह मामला भी कहीं टांय-टांय फिस्स हो जाएगा, और अधिकारियों के खिलाफ जांच करवाने की अन्य मुख्यमंत्रियों की घोषणाओं की तरह त्रिवेन्द्र रावत भी जांच को ठन्डे बस्ते में डालकर चुप बैठ आएंगे ,लेकिन मुख्यमंत्री ने एसआईटी से रिपोर्ट मिलने के तुरंत बाद मुख्यसचिव को जांच के आदेश देते हुए मामले में जांच के दायरे में आने वाले दोनों आईएएस अधिकारियों को एसआईटी के सवालों का जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय देकर यह साफ़ कर दिया है कि भ्रष्टाचार पर सरकार कतई भी किसी को छोड़ने वाली नहीं। 

वहीँ एक अन्य दूसरे मामले में सूबे के चर्चित अधिकारी मृत्यंजय मिश्रा जो सूबे में तैनात तमाम आलाधिकारियों के नाक के बाल माने जाते रहे हैं,उनके खिलाफ विजिलेंस जांच का फैसला अपने आप में तब महत्वपूर्ण हो जाता है जब मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश की मृत्युंजय मिश्रा के साथ गलबहियां जगजाहिर होने के बाद भी मुख्यमंत्री ने  भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात को पुख्ता करते हुए मिश्रा के खिलाफ ही विजिलेंस जांच का आदेश दे डाला  कि बस अब बहुत हो गया, भ्रष्टाचार का पानी सर से ऊपर पहुँच गया है। उल्लेखनीय है कि मृत्युंजय मिश्रा पर आयुर्वेद विश्वविद्यालय में तैनाती के दौरान भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे। वहीँ वे अब उत्तराखंड में अपनी दाल न गलती देख यहाँ से उत्तरप्रदेश जाने की तैयारी में थे, लेकिन उससे पहले ही उनपर विजिलेंस जांच का शिकंजा कस गया। 

इतना ही नहीं मुख्यमंत्री ने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की कवायद को आगे बढ़ाते हुए बीते दिन स्वयं और मंत्रियों और विधायकों सहित अधिकारियों के  गिफ्ट लेने और देने को भी प्रतिबंधित कर दिया है। मुख्यमंत्री को यह घोषणा तब करनी पड़ी जब उनके संज्ञान में आया कि कई मंत्री और विधायक सार्वजनिक मंचों पर मंहगे उपहार लेते हैं,उन्होंने माना कि गिफ्ट लेने और देने की यह परंपरा कहीं न कहीं भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने जैसी प्रतीत होती है, लिहाजा उन्होंने इस परम्परा को प्रतिबंधित कर दिया। इसके बाद अब मुख्यमंत्री ,मंत्री, विधायक और अधिकारी प्रदेश में अब सार्वजनिक मंचों पर गदा, तलवार, मुकुट आदि समेत अन्य कीमती उपहारों के लेने देने पर रोक लगेगी। मुख्यमंत्री समेत मंत्री, विधायक व अधिकारियों को भी इस दायरे में शामिल किया गया है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस संबंध में जल्द शासनादेश जारी करने के निर्देश दिए हैं।