उत्तराखंड में मुख्यमंत्री की घोषणा आज संभव

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चेहरे को लेकर भाजपा की रणनीति ही रही सफल

देहरादून । विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के साथ उत्तराखंड में भी भारतीय जनता पार्टी को छप्परफाड बहुमत मिलने के बाद अब यह तय है कि अन्य दलों की तरह भाजपा के लिये भी उत्तराखंड की राजनीतिक वरीयता उत्तराखंड के बाद ही है। यह लगभग तय है कि पार्टी पहले उत्तर प्रदेश में नेतृत्व का मामला सुलझायेगी और उसके बाद या साथ उत्तराखंड का। हालांकि पार्टी प्रवक्ता वीरेंद्र सिंह बिष्ट ने इस बारे में पूछने पर बताया कि पार्टी विधायकों को देहरादून पहुंचने को कह दिया गया है और पर्यवेक्षक भी या तो आज देर शाम या फिर कल प्रातः देहरादून पहुँच  जायेंगें। 

पर्यवेक्षक एक-एक कर विधायकों की राय लेकर दिल्ली में जाकर भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को उसकी रपट देंगें और शाह ही विधायक दल के नेता के नाम की घोषणा करेंगें। बताया जा रहा है कि पर्यवेक्षकों व विधायकों के ठहरने और विधायक दल की बैठक की व्यवस्था सुभाष रोड पर एक होटल में की गई है। उधर, प्रशासन ने भी शपथ ग्रहण की व्यवस्थाओं को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। पत्रकारों को पास की व्यवस्था की जा रही है।

पूरे चुनाव अभियान में कांग्रेस से लेकर मीडिया तक में यह बात केंद्र में रही कि आखिर भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा और चेहरा सामने नही रखा जा रहा है तो क्यों ? इस रणनीति का लाभ क्या है और क्या यह सफल होगी ? परिणामों ने इस सवाल का जवाब भी दे दिया है और बता दिया है कि भाजपा का किसी एक चेहरे को मुख्यमंत्री बनाकर चुनाव लडने की बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लडना कितना सही और फलप्रद रहा है।

भाजपा ने पहली बार इस प्रदेश में इतिहास रचते हुए दो तिहाई बहुमत हासिल कर दिखाया। अब भाजपा नेता भी आॅफ रिकार्ड ही सही,यह बताने से नही चूक रहे हैं कि कांग्रेस सरकार की लाख एंटी इंकम्बैसी रही हो लेकिन भाजपा किसी भी एक नाम को आगे कर चुनाव लडती तो उसे इस बार 20 सीटे ंपाना भी आसान नही होगा क्योकि उस एक नाम को छोड शेष सारे प्रमुख चेहरे उसे बर्बाद करने में अपनी पूरी ऊर्जा लगा देते।

अब इस अस्पष्ट स्थिति में हर कोई अपनी आशा में लगा रहा या ज्यादा से ज्यादा चुप रहा होगा। टिकट वितरण के समय जरूर बडे नेताओं के चहतों की पहचान की कोशिशें हुई होंगी लेकिन प्रधानमंत्री के अभियान के बाद किसी प्रत्याशी के विरूद्ध किसी की कुछ करने की हिम्मत शायद ही हुई होगी। उल्टे कांग्रेस के मुख्यमंत्री प्रत्याशी के विरूद्ध फिल्डिंग सजाने में भाजपा को सुविधा हो गयी और वह हरीश रावत की विकेटों को दोनों पिच पर चटकाने में सफल हो गई । अब किसी को यह सवाल ध्यान नही आ रहा कि भाजपा की रणनीति में चेहरा घोषित न करने की कमी भी थी।