सत्ता मिली को बढ़ेगा हरीश का कद !
रावत के नाम पर ही लड़ा गया है उत्तराखंड का चुनाव
भाजपा नेताओं ने भी सीएम हरीश पर साधा है निशाना
अतुल बरतरिया
”2014 के लोकसभा चुनाव में टीम पीके ने नरेंद्र मोदी को बतौर हीरो जनता के सामने पेश किया था। उस चुनाव में भाजपा की ओर से केवल और केवल मोदी का चेहरा ही आगे किया गया था। सारे प्रचार की कमान मोदी के हाथों में ही थी। इस बार टीम पीके हरीश रावत के साथ है। उसी अंदाज में हरीश को हीरो के तौर पर अवाम के सामने पेश किया गया है। इतना ही नहीं, टीम पीके ने हरीश के बाहुबली अवतार को भी जमकर प्रचारित किया। अब 11 मार्च को सामने आएगा कि टीम पीके हरीश को हीरो साबित करने में किस हद तक सफल होती है।”
देहरादून। इस विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने पूरा चुनाव मुख्यमंत्री हरीश रावत के नाम पर ही लड़ा है। न तो कहीं कांग्रेस दिखी और न ही कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने कोई खास ध्यान दिया। इतना ही नहीं भाजपा ने भी अपना पूरा ध्यान हरीश पर ही फोकस किया है। भाजपा के प्रचार में हरीश का “नेगेटिव चेहरा” ही सामने लाया गया। इसके बाद भी अगर हरीश सत्ता में लौटते हैं तो उनकी सियासी कद इतना बढ़ जाएगा कि कांग्रेस हाईकमान भी उनपर “आंखें तरेरने” की स्थिति में नहीं होगा।
मुख्यमंत्री बनने के बाद हरीश रावत ने सरकार को तो अपने अंदाज में चलाया ही, कांग्रेस संगठन को भी एक तरीके से ‘हाईजैक’ सा कर लिया। किशोर उपाध्याय ‘नामभर के ही अध्यक्ष’ साबित हुए। पिछले साल मार्च के सियासी घटनाक्रम से अपने अंदाज में निपटने के बाद हरीश ने खुद को कांग्रेस का सबकुछ मानते हुए ही काम किया। कांग्रेस के दिग्गज एक-एक करके बगावत करते रहे। लेकिन हरीश का सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा। हरीश इतने मजबूत होते रहे कि कांग्रेस हाईकमान भी उन्हीं की हां में हां मिलाता रहा। हालात यहां तक बने कि प्रदेश अध्यक्ष को अपनी पसंद की सीट न मिल सकी और हरीश के पसंदीदा प्रीतम पंवार के खिलाफ खड़े कांग्रेस प्रत्याशी को मैदान छोड़ने के लिए कहने को हाईकमान मजबूर हो गया।
अब चुनावी बेला आई तो सबकुछ हरीश के इर्द-गिर्द ही सिमट गया। चुनावी प्रचार की कमाम हरीश ने खुद संभाली तो कांग्रेस की प्रचार सामिग्री से प्रदेश अध्यक्ष की बात तो दीगर राहुल गांधी और सोनिया गांधी तक गायब हो गईं। हरीश ने अपने प्रचार की कमान टीम पीके को सौंपी तो पीके ने एक स्ट्रेटजी के तहत पूरा ताना-बाना हरीश के आसपास ही बुन डाला। राहुल गांधी के रोड शो को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस के बड़े नेता उत्तराखंड में दिखाई ही नहीं दिए। कुछ आए भी तो महज प्रेस कांफ्रेंस करके ही लौट गए।
दूसरी ओर भाजपा ने भी अपनी पूरी हरीश को ही घेरने में लगा दी। केंद्र के 16 मंत्रियों के साथ ही स्टार प्रचारक हेमामालिनी और फायरब्रांड योगी आदित्यनाथ ने सभाएं की तो हरीश पर ही फोकस किया। भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ही नहीं खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सीएम हरीश रावत को ही निशाने पर रखा। एक अनुमान के अनुसार भाजपा नेताओं चुनाव के दौराव राज्य में 107 सभाएं की और शायद ही कोई ऐसी सभा रही हो, जहां हरीश का नाम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप ने न लिया गया हो।
15 फरवरी सूबे के अवाम ने अपना फैसला ईवीएम में कैद कर दिया है। सत्ता की चाभी किसे सौंपने का अवाम ने मन बनाया है, यह तो 11 मार्च को ही सामने आएगा। लेकिन एक बात साफ दिख रही है कि अगर तमाम विपरीत हालात के बाद भी हरीश रावत एक बार फिर से सीएम की कुर्सी पर काबिज होते हैं तो कांग्रेस की सियासत में हरीश का कद बेहद बढ़ जाएगा। यह भी हो सकता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से हरीश ही मोदी को चुनौती देते दिखें।
भाजपा आई तो बढ़ सकती है ‘मुश्किलें
इस सियासी खेल का एक दूसरा पहलू भी है। अगर 11 मार्च को भाजपा सत्ता हासिल करती है तो हरीश की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। हरिद्वार की जनसभा में पीएम नरेंद्र मोदी के इन लफ्जों पर गौर करे- “जुबान संभाल कर बात करिए, आपकी कुंडली मेरे पास है। कोई कितना ही बड़ा क्यों न हो कानून अपना काम करके ही रहेगा”। पीएम मोदी के चेतावनी भरे इन लफ्जों को सीएम हरीश के स्टिंग की जांच सीबीआई के पास होने से जोड़कर भी देखा जा रहा है। वैसे भी मार्च-2016 में सियासी तौर पर हरीश रावत से तगड़ी शिकस्त खा चुकी भाजपा अपना हिसाब चुका करने का कोई मौका शायद ही छोड़े। ऐसे में हरीश की दिक्कतें बढ़ सकती हैं।