देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून । विधानसभा चुनाव में उतरने वाली हर बड़ी पार्टी बहुमत के लिये चुनाव लड़ती है। उत्तराखंड में इस श्रेणी में केवल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को ही इस श्रेणी में रखा जा सकता है। इनमें कांग्रेस बहुमत लाती है तो इसका पूरा श्रेय पूरे पांच साल मांगने वाले मुख्यमंत्री हरीश रावत को ही जायेगा और वही प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री होंगे।
इसमें किसी को किसी प्रकार का संशय नहीं है। आखिर उत्तराखंड में यह पहली बार होगा कि कोई सत्तारूढ़ पार्टी दोबारा सत्ता पायेगी। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चमत्कार के भरोसे चुनाव लड़ रही भाजपा में कौन मुख्यमंत्री होगा, यह प्रधानमंत्री मोदी के अलावा शायद ही और किसी को पता हो। इसीलिये पार्टी के शुभचिन्तकों के बीच चिन्ता यह है कि क्या पूर्ण बहुमत आने पर भी सरकार पांच साल शांति से चल पायेगी?
कारण यह कि कांग्रेस से भाजपा में आये दर्जनभर से भी ज्यादा दिग्गजों में से एक ऐसे भी रहे जो बीच-बीच में कुछ अंतराल के बाद कांग्रेस से भाजपा में नेताओं को ज्वाइनिंग कराते ही रहे और हर ज्वाइनिंग के बाद बयान देते रहे कि अब हर रोज कांग्रेस से बड़े नेताओं की ज्वाइनिंग करायेंगे। इस धुन में उन्होंने बाहुबलियों और भारतीय दंड संहिता की धारा 302 तक के आरोपियों तक की ज्वाइंनिंग करा डाली। इस सबमें भाजपा नेता तमाशबीन के अलावा और कुछ नहीं रह पाये। ऐेसे ही इस नेता ने भाजपा में अपनी छवि किंग मेकर की बना ली।
अब कहा जा रहा है कि ये नेता भाजपा में न केवल कांग्रेस से भाजपा में आये हर पूर्व विधायक को टिकट दिलाने में सफल रहे बल्कि उन्होंने विधानसभा चुनाव में टिकटों को लेकर भिडे़ नेताओं में से भी कुछ की सफल पैरवी कर उन्हें टिकट दिलवाया बल्कि उन्हें जिताने को थैली भी खोल दी। चर्चा है कि कुछ सीटों पर उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशियों के वोट काटने को मुस्लिम प्रत्याशी उतार कर उन्हें फंडिंग भी अपने स्रोतों से की। उनके इस अहसान से दबे प्रत्याशी अपनी जीत के लिये पार्टी के साथ इन्हें श्रेय देंगे ही और समय आने पर इनके काम भी आयेंगे।
छन कर आती रही इन्हीं सूचनाओं ने अब प्रदेश के भाजपा नेताओं की नींद खराब कर दी है। कारण यह भी है कि कोई राजनीतिक व्यक्ति यह सब काम धर्मार्थ तो कर नहीं करेगा। जाहिर है यह नेता ऐन मौके पर अपने पत्ते खोल कर खुद को मुख्यमंत्री बनाने की शर्त रख सकता है और न माने जाने पर एक तिहाई विधायकों को लेकर अलग तक खड़ा हो सकता है। यह आशंका इसलिये भी है कि यह नेता हर सांस में यह कहते नहीं चूका कि उनकी लड़ाई कांग्रेस से तो है ही नहीं और कांग्रेस तो अब रही भी नहीं। उनकी लड़ाई तो मुख्यमंत्री हरीश रावत से है कांग्रेस से नहीं । इसका फलीतार्थ यह भी तो है कि यह नेता राहुल गांधी से अपनी शर्त मनवाने पर कांग्रेस में वापसी की बात करें तो इस संभावना को कौन रोकेगा ? जाहिर है, इस दु:स्वप्न को रोकने को उत्तराखंड के भाजपा नेताओं के पास फिलहाल तो कोई फार्मूला नहीं है और वे घटनाओं को अपनी स्वाभाविक प्रवाह में होने देने को विवश हैं जिसमें उनकी भूमिका मात्र दर्शक की ही हो सकती है।