चुनाव में पांच सौ करोड़ खर्च करने के बाद भी भाजपा में निराशा

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मोदी फैक्टर का लिटमस टेस्ट तो दिल्ली और बिहार में हो चुका यहां तो फाइनल टेस्ट !

देहरादून : भारतीय जनता पार्टी द्वारा इस विधान सभा चुनाव पर 500 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किये जाने के बाद भी मायूसी का माहौल है। जबकि कांग्रेस ने इस चुनाव पर खर्चा किया केवल सवा सौ करोड़ वह भी केवल पी के एंड कंपनी के मार्फ़त। इतना पैसा पानी की तरह बहाने के बाद भी भाजपाइयों को उम्मीद नहीं कि उनकी सरकार बन रही है जबकि दूसरी तरफ कांग्रेस के मुख्यमंत्री हरीश रावत परिणामों के अपने पक्ष में होने के प्रति निश्चिन्त नज़र आ रहे हैं और आये दिन राजधानी के सामान्य कार्यक्रमों में ही नहीं बल्कि उन तमाम होटलों व ढाबों के खाने का लुत्फ़ के रहे हैं जहाँ वे व्यस्तता के चलते नहीं जा पाते थे। वहीँ दूसरी तरफ भाजपा के हवाई नेता राजधानी छोड़ दिल्ली व यूपी की तरफ उड़ चुके हैं और स्थानीय नेता जीत-हार के गुणा -भाग में अपना सिर खपा रहे हैं कि आखिर अब होगा क्या?

वहीँ चुनाव आयोग द्वारा उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के मतदान प्रतिशत के संशोधित आंकड़े पेश करने से भाजपा में खलबली मच गयी है। भाजपा ने चुनिंदा बड़े समाचार पत्रों, टीवी चैनलों तथा सोशल मीडिया, होर्डिंग, बैनर, वाल पेंटिंग, पोस्टर, एलईडी पैनल वाले चुनावी रथों पर चुनाव प्रचार में अनुमानित 500 करोड़ रूपये का खर्च किया है। जबकि कांग्रेस ने इन माध्यमों पर कोई पैसा खर्च नहीं किया। कांग्रेस ने अपनी लड़ाई केवल सोशल मीडिया और स्थानीय तथा क्षेत्रीय मीडिया के माध्यम से लड़ी वो भी बिना पैसा दिए।

गौरतलब है कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल में स्थानीय व क्षेत्रीय मीडिया को काफी सपोर्ट किया था। चूंकि स्थानीय मीडिया की समाज में सीधी पकड़ है अतः उन सबने कांग्रेस का प्रचार किया। चूंकि कांग्रेस ने किसी को भी विज्ञापन नहीं दिया इसलिए मीडिया के सभी वर्गों ने इसे स्वीकार कर लिया वहीं प्रचार में भाजपा अकेली रह गयी। मीडिया में भी प्रचार को लेकर किसी प्रकार की कोई प्रतिस्पर्धा देखने को नहीं मिली। सभी ने, उन्होंने भी जिनको भाजपा ने लाखों रूपये के विज्ञापन दिए, पूरे चुनाव में संतुलित रिपोर्टिंग की। मतदान से एक दिन पहले तक यानि 14 फरवरी तक भी मतदाताओं की खामोशी भाजपा को परेशान किए हुए थी।

दूसरी तरफ मीडिया में मोदी की रैली में भारी भीड़ की खबरें तो आ रही थी लेकिन उस तरह की रिपोर्टिंग नहीं आ रही थी जिसकी उम्मीद भाजपा करोड़ो रूपये खर्च करके कर रही थी। चूंकि मीडिया प्रचार से राज्य की मुख्य पार्टी गायब थी इसीलिए भाजना के नकारात्मक प्रचार और विज्ञापनों का असर देखने को नहीं मिला। आप इसे इस तरह से मान सकते है कि क्रिकेट के मैदान में बैटिंग करने वाली टीम गायब थी अब भाजपा रूपी दूसरी पार्टी गेंदबाजी किये जा रही है, ना तो कोई चौका या छक्का लग रहा है न ही कोई आउट हो रहा है। यानि गेंदबाजी करने वाली पार्टी की सारी मेहनत बर्बाद हो गयी। उत्तराखंड में भी कुछ ऐसा ही हुआ। कल जब 70 प्रतिशत मतदान के आंकडे थे तब भाजपा के चेहरे थोड़ा खिले हुए थे। हालांकि दोपहर दो बजे के बाद हुई बंपर वोटिंग से उनके चेहरे पर तनाव भी साफ झलक रहा था लेकिन फिर भी सरकार बनाने के लिए थोड़ा निश्चिन्त थे लेकिन जैसे ही 21 फरवरी को चुनाव आयोग ने कहा कि राज्य में मतदान 70 प्रतिशत नहीं 67 प्रतिशत हुआ और यह पिछले चुनाव में हुए मतदान से 1.5 प्रतिशत कम हुआ है, भाजपा के चेहरे पर शिकन आ गयी।

भाजपा की चिंता अब तेज हो गयी। उनकी निराशा तब सामने आयी जब हरिद्वार में नरेंद्र मोदी बिना चुनाव आयोग की पूर्वानुमति से की गयी चुनावी रैली करने के आरोप में वहां के जिलाध्यक्ष और चुनाव संयोजक पर सहायक निर्वाचन अधिकारी ने कोतवाली में मुकद्मा दर्ज करा दिया। इस कार्यवाही के बाद भाजपा नेता आगबबूला हो गये और अधिकारियों को ही धमकाने लगे। उनके बोलने का तरीका यह बता रहा है कि वह अपनी संभावित हार मान चुके है।
उत्तराखंड और पंजाब से आ रही खबरों का उत्तरप्रदेश पर प्रभाव पड़ना लाजमी है। बता दें कि सभी राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने नाम पर वोट मांगा है।

लेकिन यहां यह तथ्य उजागर करना जरूरी है कि उत्तराखंड के जिन क्षेत्रों में नरेंद्र मोदी ने चुनावी रैलियां की वहां की हाॅट सीटों पर अपेक्षाकृत कम मतदान हुआ। यह तो यह है कि 11 मार्च को जब ईवीएम मशीनें खुलेंगी उसी दिन यह तय हो जायेगा कि 2014 के लोकसभा चुनावों में देश के लोगों ने भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया था या फिर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को। वैसे मोदी फैक्टर का लिटमस टेस्ट तो दिल्ली और बिहार में हो चुका है। यहां तो फाइनल टेस्ट के घोषणा होना बाकी है।