खबर पर लगी मुहर बिपिन रावत बने थलसेनाध्यक्ष

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अनिल  उपाध्याय की ”रॉ ” प्रमुख पर हुई ताजपोशी

देहरादून : उत्‍तराखंड के लिए 17 दिसंबर का दिन गौरवांवित रहा। इस दिन उत्‍तराखंड के दो वीर सपूतों विपिन रावत को थनसेना प्रमुख और अनिल को  रॉ का प्रमुख बनाया गया। सैन्य बहुल उत्तराखंड के लिए 17 दिसंबर का दिन गौरवान्वित करने वाला रहा। यहां के दो सपूतों को देश की सुरक्षा से जुड़ी अहम जिम्मेदारियों से नवाजा गया है। इनमें नवनियुक्त थल सेना अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत और खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के प्रमुख अनिल कुमार धस्माना दोनों ही पौड़ी जिले के रहने वाले हैं। इससे राज्यवासी खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। बता दें कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशन्स (डीजीएमओ) भी उत्तराखंड से ही हैं। थल सेनाध्यक्ष के लिए उपसेना प्रमुख बिपिन रावत और रॉ के प्रमुख पद के लिए वरिष्ठ आइपीएस अनिल कुमार धस्माना के नाम सबसे आगे चल रहे थे। शनिवार देर शाम दोनों के नाम की घोषणा होते ही समूचे उत्तराखंड में खुशी की लहर दौड़ गई। गौरव की यह सूचना मिलते ही प्रदेशवासियों का सीना फख्र से चौड़ा हो गया है।

बता दें कि अनिल कुमार  पौड़ी जिले के तोली गांव के मूल निवासी हैं, जबकि बिपिन रावत सैणागांव (द्वारीखाल ब्लॉक) के। खुशी इसलिए भी दोगुनी हो गई कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी उत्तराखंड के पौड़ी जिले से हैं, जबकि डीजीएमओ टिहरी जनपद से ताल्लुक रखते हैं।प्रदेश के सिर यह ताज ऐसे समय पर सजे हैं, जब पूरा देश आतंक के खिलाफ डटकर खड़ा है। ऐसे समय में राज्य के सपूतों को राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रमुख पदों की कमान मिलना निश्चित तौर पर अभूतपूर्व उपलब्धि है।

देश के अगले सेना प्रमुख का दायित्व संभालने जा रहे ले. जनरल बिपिन रावत उत्तराखंड के पौड़ी जनपद के मूल निवासी सैन्य परिवार की पृष्ठभूमि से आते हैं।इनके पिता लक्ष्मण सिंह रावत भी ले. जनरल रहे हैं। देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) से स्नातक बिपिन रावत को दिसंबर 1978 में 11 गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटालियन में कमीशन मिला था। अकादमी में उन्हें ‘स्वॉर्ड ऑफ ऑनर’ प्रदान किया गया था।

लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत को एक सितंबर, 2016 को सेना का उप प्रमुख बनाया गया था। उप सेना प्रमुख बनने से पहले ले. जनरल रावत सेना की दक्षिणी कमान के कमांडर थे। बिपिन रावत को अधिक ऊंचाई वाले स्थान पर युद्ध और आतंकवाद विरोधी गतिविधियों का अनुभव प्राप्त है। इससे पहले वे पूर्वी सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर इंफेंट्री बटालियन की कमान भी संभाल चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने कश्मीर घाटी में राष्ट्रीय राइफल्स और एक इंफेंट्री डिवीजन की कमान भी संभाली है।

उन्होंने कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में चैप्टर-7 मिशन में बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड की भी कमान संभाली है। संयुक्त राष्ट्र के साथ काम करते हुए उन्हें दो बार फोर्स कमांडर प्रशस्ति पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।उन्होंने कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में चैप्टर-7 मिशन में बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड की भी कमान संभाली है। संयुक्त राष्ट्र के साथ काम करते हुए उन्हें दो बार फोर्स कमांडर प्रशस्ति पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।

वहीँ उत्तराखंड के पौड़ी में जन्में 1981 बैच के आईपीएस अफसर अनिल  को रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) का नया प्रमुख चुना गया है। आइए हम बताते हैं कि रॉ प्रमुख की जिंदगी के कुछ अनछुए पहलुओं के बारे में. विदेशों में खुफिया अभियानों में भूमिका निभाने वाली रॉ के नए प्रमुख बलूचिस्तान मामलों के विशेषज्ञ हैं। अफगानिस्तान मामलों में भी उनकी गहरी पकड़ है। साथी ही वे एजेंसी की यूरोप डेस्क पर भी काम कर चुके हैं।

अनिल का  विवाह करीब 30 साल पहले धूरा गांव पौड़ी की ज्योति के साथ हुआ। ज्योति पौड़ी के प्रतिष्ठित जुगराण परिवार की बेटी थी। उनके सबसे बड़े भाई आईपीएस डीसी जुगराण मध्य प्रदेश के डीजीपी पद से रिटायर हुए। जबकि उनसे छोटे भाई विनोद जुगराण जेपी कंपनी से जीएम पद से रिटायर्ड हैं।

विनोद जुगराण ने बताया कि उनका इकलौता बेटा एमटेक करने के बाद जर्मनी में ही सेटल हो गया है। बेहद मेहनती अनिल खेलों के भी शौकीन हैं। गोल्फ खेलने के अलावा उन्हें क्रिकेट देखने का भी शौक है। तीन भाई और तीन बहनों के परिवार में सबसे बड़े अनिल धस्माना अपने परिवार के हर छोटे-बड़े आयोजन में शामिल होते हैं। डेढ़ वर्ष पहले विनोद जुगराण के बेटे की शादी में शामिल होने भी वे दून आए थे।