‘रिवर्स माइग्रेशन’ के द्वारा गाँवों को आबाद करने की शुरुआत

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  • निर्जन गाँवों को आबाद करने का अनूठा प्रयास
  • राज्य की महान संस्कृति विलुप्ति के कगार पर
  • गैर-आबाद ”बौर गांव” के पुनर्जीवन की कार्ययोजना

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

राज्य के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ होगा कि इस तरह से एक निर्जन गाँव को गोद लेने और उसके पुनर्विकास का प्रयास किया गया हो। यह अपने आप में एक अनूठा कदम है।

देहरादून : भारतीय जनता पार्टी के राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी ने आज एक अभूतपूर्व फैसला लेते हुए उत्तराखंड राज्य के एक गैर-आबाद गाँव/निर्जन गाँव, ग्राम – बौर (ब्लॉक दुगड्डा, जनपद पौड़ी) को गोद लेने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि इस गाँव को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लिया गया है, इसके बाद अन्य ऐसे गैर-आबाद गाँव, जहां कोई भी आबदी नहीं रहती है, को भी इसी मॉडल पर आबाद करने के प्रयास किये जायेंगे। इस गाँव को पुनर्जीवित करने के लिए मूलभूत सुविधाओं बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य और रोजगार से जोड़ा जाएगा ताकि गाँव पुनः पुनर्जीवित होकर अपने पूर्व के स्वरूप में आबाद हो सके। इस संबंध में शीघ्र ही इस गाँव के प्रवासियों के साथ बैठक की जायेगी। 

श्री बलूनी ने कहा कि  देवभूमि उत्तराखंड में पलायन की समस्या काफी भयावह बनती जा रही है, तमाम गाँव धीरे-धीरे खाली होते जा रहे हैं और राज्य की महान संस्कृति विलुप्ति के कगार पर है। ऐसे में यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने राज्य की विशिष्ट संस्कृति और परंपरा को पुनः प्रतिष्ठित करने के लिए कटिबद्ध हों। उन्होंने कहा कि निर्जन गाँवों को आबाद करने का यह प्रयास उत्तराखंड के लिए मील का पत्थर साबित होगा। जो नौजवान रोजगार के लिए गाँव छोड़ने को मजबूर हुए हैं, उन्हें वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध कराकर ‘रिवर्स माइग्रेशन’ के द्वारा गाँवों को आबाद करने की शुरुआत की जा रही है। 
राज्य सभा सांसद ने कहा कि बौर गांव को अंगीकृत करने के साथ-साथ इन गैर-आबाद ग्रामों के पुनर्जीवन की कार्ययोजना भी तैयार कर ली गई है, जिसके तहत वे उत्तराखण्ड के प्रवासी परिवारों/संगठनों के बीच जाकर संवाद करेंगे। उत्तराखंड के लाखों प्रवासी जो कि दिल्ली, लखनऊ, बरेली, मेरठ, गाजियाबाद, चंडीगढ़, भोपाल, इंदौर, जयपुर, मुंबई आदि शहरों में जाकर बस गए हैं, उन सबसे चर्चा कर गांव के पुनर्जीवन हेतु अनुरोध किया जाएगा और उनकी मांगों के निराकरण हेतु प्रयास किया जाएगा। साथ ही प्रवासियों से संवाद अभियान के माध्यम से उत्तराखंड के कौथीग (मेले), ऋतुपर्व और पारंपरिक आयोजनों को पुनः पुनर्जीवित करने के लिए संपर्क किये जायेंगे।