उत्तराखंड में बीडीएस भर्ती के नाम पर एक बड़े घोटाले की आहट !

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दीपक आज़ाद

उत्तराखंड में सियासतजादों की किस्मत का फैसला तो आने वाली 11 मार्च को होगा, लेकिन भ्रष्टाचार और घोटालों के लिए कुख्यात इस राज्य में इन दिनों नौकरशाहों की मंडली डाक्टरों की भर्ती के नाम पर एक बड़े घोटाले को अंजाम देने में लगी हुई है! बीडीएस भर्ती के नाम पर हो रहे इस खेल में कायदे-कानूनों को ताक पर रखकर रचा जा रहा है।

राज्य का स्वास्थ्य महकमा अपने कुशासन, भ्रष्टाचार, और घोटालों के लिए बदनाम रहा है। राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल किसी से छुपा नहीं है, एक के बाद एक घोटाले वक्त-वक्त पर बाहर आते रहे हैं। तेल बिल और नियुक्ति घोटाले खासे चर्चित रहे हैं।

मृत्युंज्य मिश्रा की कुलसचिव की कुर्सी पर नियुक्ति को लेकर राजभवन और सरकार के बीच एक लम्बा टकराव भी हुआ, लेकिन सरकार उसको संरक्षण देती रही। जमकर किरकिरी होने के बाद सरकार ने मिश्रा को आयुर्वेदिक विवि में कुलसचिव की कुर्सी से हटाने के आदेश जारी भी किए, लेकिन मिश्रा अदालत से स्टे लेकर मौज फरमा रहे हैं।

अगर सरकार बहादर चाहती तो मिश्रा कभी के हट गए होते, लेकिन सरकार की मंशा को इस तथ्य से ही समझा जा सकता है कि एक ओर राजभवन के दबाव में मिश्रा को हटाने के आदेश जारी किए गए, तो दूसरी ओर मिश्रा को दिल्ली में स्थानिक आयुक्त जैसी भारी-भरकम कुर्सी पर भी बैठा दिया गया। जबकि स्थानिक आयुक्त की कुर्सी पर आजतक आईएएस अधिकारी को ही बैठाया जाता रहा है। जैसा कि मिश्रा के लिए यह काफी नहीं था कि मिश्रा को मेडिकल भर्ती बोर्ड में परीक्षा नियंत्रक की कुर्सी भी सौंप दी गई।

चुनावी तैयारियां में जुटी सरकार की व्यस्तता का फायदे उठाते हुए शासन में मिश्रा को खुला संरक्षण दे रहे नौकरशाहों ने न केवल मिश्रा को यह कुर्सी सौंप दी, बल्कि आनन-फानन में राज्य में बीडीएस डाक्टरों की भर्ती भी शुरू कर दी। जिस काम के लिए मिश्रा को मेडिकल भर्ती बोर्ड में लाया गया, उस काम को अंजाम देने के लिए मिश्रा की देखरेख में दंत चिकित्सकों के पदों पर भर्ती के लिए स्वास्थ्य महकमें में बैठे अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने हरी झंडी दे दी।

नियमानुसार होना तो यह चाहिए था कि डाक्टरों की भर्ती मेरिट के आधार पर होनी चाहिए, लेकिन इस भर्ती में लिखित परीक्षा आयोजित की गई। इस तथ्य के बावजूद कि राज्य में करीब 750 बीडीएस डाक्टर सूचीबद्ध हैं, पूरे देश से आवेदन मांगे गए। लिखित परीक्षा का आयोजन तब किया गया जबकि डाक्टर भर्ती को लेकर सरकार का शासनदेश इसकी इजाजत नहीं देता है।

साल 2013 में 27 सितम्बर को जारी शासनादेश के मुताबिक दंत चिकित्सकों की भर्ती सौ अंकों की साक्षात्कार के आधार पर आयोजित की जाएगी। इस शासनादेश के आधार पर पूर्व में बीडीएस की भर्ती हो चुकी है। इसके मुताबिक 60 अंक शैक्षिक योग्यता, 20 अंक अनुभव व 20 अंक साक्षात्कार के आधार पर अभ्यर्थियों का चयन किया जाएगा।

लेकिन इस बार नौकरशाहों ने पूरी चयन प्रक्रिया पलटकर लिखित परीक्षा को आधार बनाते हुए शुरू कर दी। विभागीय मंत्री सुरेन्द्र सिंह नेगी ने शासनादेश के तहत साक्षात्कार के आधार पर ही चयन प्रक्रिया शुरू कराने की बात कही थी, लेकिन नौकरशाहों ने मनमानी से लिखित परीक्षा कराने का फैसला लिया। यही नहीं विभाग में डेंटल सर्जन के मात्र 53 पद स्थायी हैं, जबकि भर्ती 203 पदों पर हो रही है। इसमें भी खेल देखिए कि स्थायी भर्ती 53 पदों पर ही हो रही है, और बाकी संविदा पर भरे जा रहे हैं। 53 के अलावा बाकी सभी बीडीएस के पद विभाग में सृजित ही नहीं है, ये पद एमबीबीएस के हैं।
साल 2013 में 27 सितम्बर को जारी शासनादेश के मुताबिक दंत चिकित्सकों की भर्ती सौ अंकों की साक्षात्कार के आधार पर आयोजित की जाएगी।

सवाल यह है कि एमबीबीएस के पदों पर बीडीएस की भर्ती कैसे हो सकती है? इसके साथ एक अहम सवाल यह भी है कि जब राज्य में बीडीएस डाक्टर्स भरपूर संख्या में सूचीबद्ध हैं तो फिर राष्टीय स्तर पर आवेदन मांगने की क्या जरूरत थी। एमबीबीएस में तो जायज है, लेकिन बीडीएस में क्यों? स्वास्थ्य विभाग से जुड़े सूत्र बताते हैं कि साक्षात्कार सिस्टम में मोठा माल काटने की गुंजाइश कम थी, लिहाजा लिखित परीक्षा का खेल रचा गया।

सूत्रों के दावों पर यकीन किया जाय तो 20 लाख रूपये लेकर पहले से तय अभ्यर्थियों को लिखित परीक्षा का पेपर  उपलब्ध करा दिया गया था! इस तरह इस खेल में करोड़ों का माल बटोरा गया। वहीँ अब पांच से दस लाख लेकर नियुक्तियां दिए जाने की चर्चाएं आम हैं। 

अगर सबकुछ इस खेल के खिलाड़ियों के मन मुताबिक चलता तो चुनाव आचार संहिता के बीच ही इस भर्ती का रिजल्ट भी घोषित हो चुका होता, लेकिन चुनाव आयोग में इसकी शिकायत होने के बाद इसके परीक्षा परिणाम पर रोक लग गई।

सूत्र बताते हैं कि मतदान हो चुकने के बाद अब इस परे खेल के खिलाड़ी किसी तरह सरकार गठन से पहले ही किसी भी तरह इस भर्ती प्रक्रिया को अंजाम तक पहुंचाना चाहते हैं, ताकि कोई अड़गा न लगे। लेकिन इस पूरे खेल को करीब से समझने वाले स्वास्थ्य विभाग के एक आलाधिकारी का कहना है कि यह मामला अगर हाईकोर्ट जाता है तो खिलाडियों को मुंहकी खानी पड़ जाएगी, जिसके आसार ज्यादा हैं।

इस मामले में अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश की भूमिका पर तो सवाल उठ ही रहे हैं, लेकिन मुख्य सचिव एम रामास्वामी भी कठघरे में हैं। रामास्वामी भी ओमप्रकाश की तरह मिश्रा के खासे मुरीद माने जाते हैं। इसकी एक बड़ वजह रामास्वामी के बेटे की आयुर्वेद विश्वविद्यालय में फिजियोथेरेपिस्ट की कुर्सी पर हुई नियुक्ति है?

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