बदरीनाथ के गर्भगृह का छत्र 600 साल बाद बदला जाएगा !

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  • बदरीनाथ के छत्र पर लगेगा चार किलो सोना और हीरे जड़ित लाखों रत्न
  • मथुरा में तैयार हुआ है छत्र
  • लुधियाना में हुआ बद्रीनाथ जी के छत्र  का अनावरण कार्यक्रम 

देहरादून : मध्य प्रदेश की महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा बाबा बदरीनाथ को छत्र चढ़ाये जाने के बाद अब लगभग 600 साल बाद भगवान बदरीनाथ जी का छत्र बदलने जा रहा है। यह छत्र बद्रीविशाल जी के गर्भगृह में उनके विग्रह के ऊपर लगा 600 साल पुराने  सोने के छत्र की जगह लगेगा।

सोने के छत्र का निर्माण मथुरा में कराया गया है। इसे बनाने में पांच महीने से ज्यादा का वक्त लगा है। इसमें चार किलो सोने, हीरे, पन्ने और कई रत्नों का प्रयोग किया गया है।इसे लुधियाना के मुक्त परिवार का सौभाग्य ही कहा जाएगा कि इस परिवार को बद्रीनाथ के छत्र  को बनाने का दायित्व मिला है। मुक्त परिवार के ज्ञानेश्वर सूद ने बताया कि वह पहली बार 1989 में श्री बदरीनाथ धाम गए थे तब से उनका बाबा बदरी के प्रति अगाध श्रद्धा और विश्वास है। वे बद्री केदार मंदिर समिति के सलाहकार भी हैं। 

पंजाब के औद्योगिक शहर लुधियाना में दुनिया के सामने पहली बार छत्र के दर्शन के लिए खास इंतजाम किए गए थे । लुधियाना के इस अनावरण समारोह में देशभर के संत विशेष रूप से शामिल हुए । कार्यक्रम की रूपरेखा और पूरी योजना में श्री वैष्णवाचार्य पुण्डरीकजी महाराज ने बहुत ही खास योगदान दिया। उन्होंने सभी संतों को निजी तौर पर निमंत्रित किया और एक एक चीज की तैयारियों में सतत लगे रहे।

कार्यक्रम कार्ष्णि पीठाधीश्वर गुरु शरणानंदजी महाराज की अध्यक्षता में और सद्गुरु देव संत प्रतिमा महाराज के विशेष मौजूदगी में संपन्न हुआ। मलूक पीठाधीश्वर राजेन्द्रदास जी, महामंडलेश्वर श्री गीता मनीषी ज्ञानानंद जी, श्री वैष्णवाचार्य पुण्डरीकजी महाराज, महामंडलेश्वर श्री विश्वेश्वरानंद जी, जगतगुरु श्री श्रीधराचार्य जी महाराज, महामंडलेश्वर श्री कैलाशानंद ब्रह्मचारी जी, भागवतकिंकर अनुरागकृष्ण शास्त्री जी, भागवताचार्य इंद्रेश जी, भागवतशरण रविनंदन जी महाराज, श्री बिहारीदास भक्तमाली जी महाराज, गौ कृपामूर्ति श्री कृष्णानंद जी महाराज, अग्रदेवाचार्य पीठाधीश्वर डॉ. श्री राघवाचार्य जी महाराज रैवासा वाले, श्रीक्षेत्र बद्रीनाथ धाम के पूज्यश्री धर्माधिकारी भुवन उनियाल,उत्तराखंड सरकार के प्रतिनिधि  श्री अजय भट्ट जी  और कई संत शामिल हुए। कार्यक्रम में हजारों की संख्या में विशिष्ट लोग भी शामिल हुए. इस कार्यक्रम का संचालन रिलीजन वर्ल्ड के संस्थापक भव्य श्रीवास्तव और आरूषि गोस्वामी ने किया।

कपाटोद्घाटन के 10 दिन बाद इस बार बदरीनाथ धाम में नौ मई को हीरा और रत्नों से जड़ित स्वर्ण छत्र बदरीनाथ गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा। वर्तमान में बदरीनाथ गर्भगृह में वर्षों पुराना सोने का छत्र मौजूद है। वर्तमान सोने का यह छत्र करीब दो किलोग्राम का है, जिसे लगभग 600 साल पहले मध्य प्रदेश की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने चढ़ाया था।

बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के मुख्य कार्याधिकारी बीडी सिंह ने बताया कि विगत वर्ष अक्तूबर में लुधियाना के व्यवसायी ज्ञानेंद्र सूद ने बदरीनाथ धाम में सोने का छत्र चढ़ाने की इच्छा जताई थी। उन्हें छत्र चढ़ाने की अनुमति दे दी गई थी। उनके अनुसार इस बार करीब तीन सौ तीर्थयात्रियों के जत्थे के साथ आठ मई को छत्र को लुधियाना से बदरीनाथ धाम लाया जाएगा। नौ मई को पूजा-अर्चना और विधि विधान के साथ छत्र को बदरीनाथ गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा।

वहीँ बदरीनाथ को छत्र चढाने वाले ज्ञानेश्वर सूद ने बताया कि श्री बदरीनाथ धाम का छत्र लगभग 600 साल पुराना है। जिसे धाम के कपाट खुलने के 10 दिन बाद 9 मई 2018 को बदला जाएगा। उन्होंने बताया कि उनके दादा गुरु महर्षि मुक्त जी ने 1918 में पहली बार श्री बदरीनाथ धाम की यात्रा की थी। उनकी यात्रा शताब्दी को लेकर ही सद्गुरु देव संत प्रतिमा महाराज के सान्निध्य में महर्षि मुक्त बदरीनाथ यात्रा शताब्दी मनाई जा रही है।

ज्ञानेश्वर सूद के अनुसार लगभग 600 साल बाद बदरीनाथ को चढ़ाये जाने वाले इस सोने के छत्र पर 4 किलो सोना लगाया गया जिसपर हीरे व रत्न जड़े गए हैं । इस छत्र का  डिजाइन उन्होंने खुद ही तैयार किया है। ज्ञानेश्वर सूद के अनुसार  भगवान बदरीनाथ के इस छत्र को मुंबई से लुधियाना कड़ी सुरक्षा में लाया जाएगा।

वहीँ गो सेवक विजय अबरोल ने बताया कि श्री बदरीनाथ धाम के छत्र का अनावरण 7 अप्रैल को संत समाज के सान्निध्य में होगा। यह अनावरण रामराज्य फार्म, बद्दोवाल में होगा। अनावरण समारोह में देशभर के संत विशेष रूप से शामिल होंगे। अनावरण के बाद छत्र को बाढ़ेवाल रोड में रखा जाएगा। जहां 7 मई तक हर शनिवार को भक्तों को दर्शनों के लिए रखा जाएगा।जिसके बाद 8 मई को इसे बदरीनाथ ले जाया जाएगा जहां 9 मई को भगवान बदरीनाथ की गर्भगृह स्थित मूर्ति के ऊपर लगाया जाएगा।