शीतकाल के बाद आगामी छह मई को खुलेंगे बदरीनाथ धाम के कपाट

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गाडूघड़ी तेलकलश यात्रा परंपराओं की सूचक

परम्परा को अब राजकुमारी श्रृज़ा संभालेंगी

नरेन्द्रनगर  : स्वर्गीय  राजा मानवेन्द्र शाह के  पुत्र राजा मनुजयेंद्र शाह की जन्म कुंडली देखने के बाद राज पुरोहितों  ने बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि और समय तय की। गृह व समय की ज्योतिषीय गणना के बाद कुलपुरोहित आचार्य कृष्ण प्रसाद उनियाल ने घोषणा की कि भगवान बदरीनाथ के कपाट 6 मई को ब्रह्ममुहूर्त में 4: 15 मिनट में खुलेंगे। इसी के साथ महाराजा मनुजेन्द्र शाह ने अपनी राज कुमारी का राज तिलक करवाया और इसी के साथ यह परम्परा को अब राजकुमारी श्रृज़ा संभालेंगी। भगवान बदरीविशाल की पूजा अर्चना को गाडूघड़ी के लिए तिल का तेल 22 अप्रैल को टिहरी रियासत की सुहागिन महिलाएं निकालेंगी।

महाराजा मनुजेन्द्र शाह की जन्म पत्रिका के वाचन के बाद पांडुकेश्वर से गाडूघड़ी लेकर पहुंचे डिम्मर जाति के लोगों से बदरीनाथ में बर्फ का अंदाजा लिया जाता है। इसके बाद ही भगवान बदरीनाथ के कपाट खुलने की तिथि निश्चित होनी है। कुलपुरोहित आचार्य कृष्ण प्रसाद उनियाल ने घोषणा की कि भगवान बदरीनाथ के कपाट 6 मई को ब्रह्ममुहूर्त में 4: 15 मिनट में खुलेंगे। इसी के साथ महाराजा मनुजेन्द्र शाह ने अपनी राज कुमारी का राज तिलक करवाया और इसी के साथ यह परम्परा को अब राजकुमारी श्रृज़ा संभालेंगी। भगवान बदरीविशाल की पूजा अर्चना को गाडूघड़ी के लिए तिल का तेल 22 अप्रैल को टिहरी रियासत की सुहागिन महिलाएं निकालेंगी।

गाडूघड़ी बदरीविशाल को नित्यप्रति चढ़ने वाले तेल को निकालने से लेकर उसे भगवान बदरीविशाल को लगाए जाने तक की विशेष परंपराताओं का घोतक है। डिम्मर जाति के लोगों के क्षेत्रीय देवता गाडू के नाम पर इस या त्रा के नाम को माना जाता है। पांडुकेश्वर से शुरू होने वाली यह यात्रा बसंत पंचमी के दिन ही टिहरी राजदरबार में पहुंचती है। डिमरी पंचायत के मुखिया नरेंद्रनगर राजदरबार से  गाडू घड़ी को लेकर यात्रा करते हैं जो यात्रा ऋषिकेश, देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, डिमरगांव होते हुए  मंदिर के कपाट खुलने के दिन बदरीनाथ धाम पहुंचती है।

पांडुकेश्वर में बसंत पंचमी से कुछ दिन पूर्व डिमरी समुदाय के लोग पहुंचते है। योग ध्यान मंदिर में नारायण पूजा होती है। योग ध्यान मंदिर में नारायण पूजा होती है। जोशीमठ से घड़ा लेकर पांडुकेश्वर जाते हैं जहां बर्फ की स्थिति का पता किया जाता है। यहां से बसंत पंचमी के पहले दिन गाडूघड़ी की पूजा व भोग लगाकर टिहरी दरबार के लिए प्रस्थान होता है और अगले दिन (बसंत पंचमी के दिन 1/2 टिहरी राजदरबार में पहुंचा जाताा है। महाराजा टिहरी ने कुछ खास अधिकार अपने पास ही रखे हैं इन अधिकारों में भगवान बदरीविशाल के कपाट खुलते समय टिहरी राजशाही के राजगुरू नौटियाल लोग जाते हैं। नौटियालों की उपस्थिति यह मानी जाती है कि महाराज अपने कुल पुरोहित के रूप में वहां स्वयं उपस्थित हैं। उनके हाथ से ही बदरीनाथ के द्वारा खोले जाते हैं। इसके साथ ही उनके हाथ से एक बैशाख तथापट बंद होनेपर एक मार्गशीर्ष की पूजा बेहद आवश्यक होती है। कभी-कभी मल मास आने पर पूजा की तिथियों में अंतर भी आता है। भगवान पर नितय लगने वाला तिल का तेल ही गाडूघड़ी में भरा जाता है। दरबार तथा नगर की संभ्रांत सुहागन स्त्रियां सज-धजकर गाडूघड़ी के लिए तिल का तेल निकाल कर गाडूघड़ी को भरती हैं।

यहीं से शंखध्वनि के साथ गाडूघड़ी यात्रा प्रस्थान होती है जो अनेक पड़ावों के साथ फिर डिम्मर गांव पहुंचती है और बदरीनाथ के कपाट खुलने के एक दिन पूव्र पांडुकेश्वर पहुंचती है। इसी तेल से कपाट खुलने के एक दिन पूर्व पांडुकेश्वर पहुंचती है। इसी तेल से कपाट खुलने पर भगवान बदरीनाथ का सबसे पहले अभिषेक किया जाता है।

इस कार्यक्रम में मंदिर समिति के सी.ई.ओ. बी.डी. सिंह, ई.ओ. अनिल शर्मा, धर्माधिकारी भुवन उनियाल, मंदिर अधिकारी, भूपेन्द्र मैठाणी, प्रचार अधिकारी, एन.पी. जमलोके, विशेष कार्याधिकारी एन.एस. नेगी, मीडिया प्रभारी हरीश गौड़, डिमरी पंचायत के अध्यक्ष सुरेश डिमरी, उपाध्यक्ष आशुतोष डिमरी। श्री बद्रीनाथ -केदारनाथ मंदिर समिति के सदस्य दिवाकर चमोली, दिनकर बाबुलकर, प्रभाकर डिमरी, जगदीश भट्ट एवं राजकुमार नौटियाल उपस्थित थे।

यहाँ यह भी उल्लेखनीय  है कि बद्रीधाम के कपाट के खुलने की तिथि के बाद अब शिवरात्रि के पर्व पर केदारनाथ व उसके बाद गंगोत्री व यमुनोत्री के कपाट भी खोले  जाने की घोषणा होगी जिसके बाद उत्तराखंड की चार धाम की यात्रा शुरू हो जाएगी।