राज्य बनने के बाद लोगों ने चीजें सवंरती कम उजड़ती ज्यादा देखी

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  • बेतालघाट में प्राकृतिक सुंदरता ही नहीं बल्कि पौराणिकता भी
  • इलाके के विकास के लिए लगती मंहगी बोली तो कुछ होती बात !
  • राज्य में सबसे मंहगे खनन के पट्टे दिए गए यहीं
  • कोसी नदी का सीना चीर-चीर कर हो रहा अवैध खनन भी  

देवभूमि  मीडिया ब्यूरो 

देहरादून : उत्तराखंड में पर्यटन की सुध ली होती तो आज बेतालघाट राज्य के सबसे अच्छे पर्यटन स्थल में होता। यह घाटी केवल अपनी प्राकृतिक सौंदर्य के लिए ही नहीं बल्कि पौराणिक तीर्थ मंदिर बेताल देव के मंदिर और माता अमेल देवी के मंदिर के लिए भी जाना जाता है बल्कि इस देव के नाम पर ही इसे वेताल घाट पुकारा गया है। ऐसा भी नहीं कि राजनीति वर्चस्व से यह क्षेत्र कमजोर रहा हो, लेकिन कहीं कुछ अभाव उपेक्षा हुई है कि बेतालघाट विकास की राह देखता रहा। आज की इसकी चर्चा इसलिए हो रही है कि राज्य में सबसे मंहगे खनन के पट्टे यहीं दिए गए हैं। खनन नीलामी की सबसे बडी बोली से राज्य सरकार का कोष जरूर भरेगा, कुछ रोजगार भी आ जाए लेकिन इसी नीलामी और बोली के बीच यह सवाल भी उठते हैं कि जिस क्षेत्र में खडे होने की अपनी क्षमता थी , वह इस नौबत पर आया है कि उसकी जमीन क्षेत्र नदियों के किनारे और भी कई जगहों की बोलियां लगाई जाए।

  • देना चाहिए था कृषि और फूल- फल को प्रोत्साहन

बेतालघाट वो न बन पाया जैसा इसे बनना चाहिए था। कभी सोचा नहीं गया कि इस सुंदर घाटी को किस तरह आकार दिया जाना चाहिए। यहां कृषि और फूल फल को कैसे प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। देश के कद्दावर नेता नारायण दत्त तिवारी को उप्र और उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला केंद्र में भी वह मंत्री रहे। यह तो नहीं कह सकते कि एनडी तिवारी ने क्षेत्र की पूरी तरह उपेक्षा बरती लेकिन उस जैसे सक्षम हाथों से इसे बहुत संवरना था। इसी क्षेत्र में यशपाल आर्य राज्य की राजनीति में काफी प्रभावशाली रहे हैं और अब उनके बेटे भी विधायक बन कर यहां का सूत्र उनके हाथों में है। यशपाल आर्य ने अपने समय में सडकों का जाल जरूर बिछाया लेकिन बेतालघाट के समुचित विकास में सुनियोजित ढंग से जो काम किए जाने चाहिए था , उसका कहीं अभाव दिखा। यहां के सामाजिक कार्यकर्ता और गैरसैण राजधानी आंदोलन मंच के प्रमुख लोगों में एक सुरेंद्र हाल्सी बेतालघाट से ही हैं।

  • यहां जो कुछ है वो उजडेगा जनजीवन पर  इसका पड़ेगा असर

बेतालघाट में खनन पट्टों पर नीलामी से वह आहत हुए हैं। सामाजिक मंच से और सोशल मीडिया के माध्यम से उन्होंने अपना दुख जताते हुए कहा है कि अगर क्षेत्र के विकास के लिए मंहगी बोली लगती या फिर पर्यटन विकास के लिए रोप वे बनाया गया होता, कृषि बागवानी पर काम होता क्षेत्र के एकमात्र अस्पताल में डाक्टर और चिकित्सा की सेवा दिलाने के लिए कोई पहल होती तो लोगों को दिलासा मिलता। इसके विपरीत खनन पट्टों की नीलामी की बात सुनी जा रही है तो यह बात उन्हें आहत करती है। सरकार का खजाना किस तरह भरता है और इसके क्या फायदे हो सकते हैं यह हम राज्य के दूसरे क्षेत्रों में खनन नीलामी को देखते हुए महसूस कर सकते हैं। यहां भी जो कुछ है वो उजडेगा। यहां के जनजीवन पर भी इसका असर पडेगा।

  • खनन पट्टों की नीलामी को लोग सतत विकास के लिए कैसे देखें ?

कहने के लिए सरकार को खनन के पट्टों की नीलामी से काफी राजकोष मिलता है और रोजगार का भी सृजन होता है, इस पूरी प्रक्रिया में सरकार और खनन विभाग अपनी आमदनी पर खुश हो सकता है। लेकिन खनन की जो पूरी प्रक्रिया है उसे देखकर और समझते हुए यह लोगो को अब तक उत्साहित नहीं किया । बल्कि लोगों की मनोभावना में इसे किसी न किसी तरह उगाई भ्रष्टाचार का माध्यम मान लिया जाता है। एक मोटी धारणा यही बनी है कि खनन पट्टों की नीलामी काली कमाई का माध्यम बनती है। साथ ही इससे प्रकृति तहस नहस होती है। ऐसा वातावरण नहीं बन पाया कि खनन पट्टों की नीलामी को लोग सतत विकास के लिए एक प्रक्रिया के रूप में देखें।

  • क्षेत्र की जनता ने अपेक्षाओं के साथ सरकारों को बदलते देखा!

कोसी के निकट का यह इलाका पर्यटन कृषि बागवानी हर तरह के विकास की अपेक्षा करता आया है। महसूस किया जाता था कि राज्य बनने के बाद जिन क्षेत्रों की उपेक्षा हुई है उस तरफ सरकारों का ध्यान जाएगा । लेकिन बेतालघाट जैसे ऐतिहासिक क्षेत्र की ओर किसी की निगाह नहीं गई। यहां के युवा रोजगार न मिलने पर पलायन कर दिल्ली मुंबई में गुजर बसर कर रहे हैं। कल्पना कर सकते हैं कि नैनीताल से इतना करीब यह क्षेत्र स्वास्थ्य सेवाओं में एक अच्छे अस्पताल की चाह रखता है। पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय बहुत दूर की बात मध्यम और छोटे किसानों को मदद देने कृषि बागवानी में सहयोग के लिए कोई केंद्र चाहता है। ऐसे हर तरह के उद्यम चाहता है जो युवाओं को रोजगार दे सके। पलायन रुके। लेकिन ऐसा वातावरण कभी बन नहीं पाया। हर बार क्षेत्र की जनता ने अपेक्षाओं के साथ सरकारों को बदलते देखा। लेकिन बेतालघाट की किस्मत नहीं बदली। हालात यही है कि लोग जंगली जांनवरों तक से परेशान हैं। जानवरों का डर जहां अपने जीवन के लिए है वहीं खेती भी इनके जरिए उजाड होती जा रही है। ग्रामीणों की कोई मदद नहीं हो पाती।

  • आंदोलन में स्वतंत्रता के लिए मशाल जगाने वालों की स्थली रहा है इलाका 

कभी कोश्यांघाटी धान के कटौरे के नाम से पुकारी जाती थी। कोशी नदी का यह इलाका आंजादी के आंदोलन में स्वतंत्रता के लिए मशाल जगाने वालों की स्थली बना रहा। कोशी की पवित्र धारा में उत्तराखँड के जनमानस को देश के लिए बलिदान त्याग की प्रेरणा मिलती रही। यहां की भूमि ने जो उपजाया उसकी सुंगध चारों ओर फैली। चावल की खूशबू बनी रही। लेकिन एक सुंदर संगठित प्रयास इस इलाके के लिए होना चाहिए था। वह नहीं हो पाया। जिस उत्साह में खनन बोली लगी और 24 घंटे में रिकार्ड टूटा उसे अभी यहां के रहवासी गौर से महसूस कर रहे हैं। अभी वे समझ नहीं पा रहे कि यह उनके हित में है या इसके नजीते उन्हें मायूस करेंगे। बेशक इ- टेडरिंग के जरिए पारदर्शिता वाली बोली लगने की बात कही जा रही हो लेकिन राज्य बनने के बाद लोगों ने चीजें सवंरती कम उजडती ज्यादा देखी है।

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