देश के प्रधानमंत्री के नाम एक पत्र

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13 मार्च 2016 को वरिष्ठ पत्रकार वेद विलास ने प्रधानमंत्री के नाम एक खुला पत्र लिखा था जिसकी व्यापक चर्चा हुई थी। तह उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी लेकिन राज्य का नया जनादेश भाजपा को 57 सीटो के साथ मिला है। ऐसे में प्रदेश की जनता फिर उसी सवाल के साथ खडी है। क्या सत्ता के बदलाव में यह राज्य भी बदलेगा। खुशहाली आएगी । या उन्हीं हालातों को जीना इस अभागे राज्य के भाग्य में लिखा है। इस पत्र को हम ज्यों का त्यों फिर प्रकाशित कर रहे हैं । क्योंकि सवाल आज भी वही खडे हैं………..

देश के प्रधानमंत्री के नाम एक पत्र-

भगवान केदारनाथ के दर्शन के लिए तो आइए मोदीजी।

माननीय प्रधानमंत्री जी,
आपको यह पत्र लिख रहे हैं। उस राज्य से जहां भगवान बद्री केदार विराजमान है। उस राज्य से जहां सैन्य परंपरा का अपना एक गौरवमय इतिहास रहा है। जहां पर्यावरण के लिए गौरा देवी और उनकी साथियों ने दुनिया भर में अलख जगाई थी। उस राज्य से जो हमेशा देश की प्रगति में कदम मिलाता रहा। जिसके युवाओं ने विश्व युद्ध से लेकर भारत चीन युद्ध, भारत पाक युद्ध , कारगिल तक प्रहार झेले हैं। सीमा की रक्षा की, शहीद हुए। और हां, जो क्षेत्र आपदा बाढ़ भूकंप का विनाश सहता है। जहां पहाड़ों की नारी जीवन का एक अलग संघर्ष है।

एक उत्तराखंड बनाया था यहां की मां, बहनों, युवाओ और बच्चों ने। अपने अतीत के दुख के भूलने के लिए और नए सपनों को जगाने के लिए । आपने भी कुछ समय, उप्र के तबके इस पर्वतीय क्षेत्र में गुजारे हैं। आपने जाना होगा कि यह आंदोलनों की भूमि रही है। उत्तराखंड आंदोलन, इन आंदोलनों पर विराम देने के लिए हुआ था। सोचा था अब जरूरत नहीं पडेगी।

हम पर्यटकों से और आने जाने वाले लोगों से यही सुनते थे कि कितना सुंदर है तुम्हारा यह क्षेत्र । पर यहां उपेक्षा हुई है। कितना कष्टकर है यहां का जीवन, क्या तुम्हारे नेता कुछ करते नहीं है। जब राज्य बना था तो लगा था ये सवाल अपने-आप खत्म हो जाएंगे, क्योकि अब हमारे पास अपने नेता है। अपने ढंग से राज्य को संवारा जाएगा। यहां की कसौटी पर इसे उन्नत बनाया जाएगा। शायद देश का आदर्श राज्य भी।

आदरणीय प्रधानमंत्री जी ,,
भाजपा वाले ताल ठोकते हैं कि इस राज्य को आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयीजी ने दिलाया। वास्तव में हम वाजपेयीजी के योगदान को कैसे भूल सकते हैं। पर वो इतना कहकर ही अटक जाते हैं। आगे नहीं कहते कि राज्य बनते ही नेतृत्व को लेकर तीन तरफ से जो संघर्ष हुए, वो संघर्ष भाजपा ही नहीं, कांग्रेस में भी इतने टिकाऊ हुए कि इस अभागे राज्य ने 15 सालों में 9 मुख्यमंत्री देखे। कोई अपनी उपलब्धि नहीं बता पा रहा है।

विडंबना थी कि आपको आपदा के समय केदारनाथ में आपदा प्रभावित लोगों की मदद के लिए नहीं जाने दिया गया था। मुझे याद है, आपने देहरादून में एक सभा में कहा था, हमें मजबूत कीजिए उत्तराखंड को संवारने का जिम्मा मेरा है। और भावुक उत्तराखंड ने पांचों सीट आपको दे दी। वक्त निकलता गया। देश को बदलने का लक्ष्य की बात कहकर आप देश दुनिया के ओर छोर गए। लेकिन उत्तराखंड की ओर नहीं आते। बमुश्किल आएं हैं। भगवान केदारनाथ भी आपकी प्रतिक्षा कर रहे हैं। कम से कम तीर्थयात्री के नाते ही आ जाइए। तीर्थयात्रा भी चलेगी तो उत्तराखंड के घर परिवार चलते रहेंगे।

क्या बताएं आपको। देश के मुखिया हैंँ। इस उत्तराखंड के बनने के बाद 20 लाख से ज्यादा लोगों ने पलायन किया है। कोई खुशी में पलायन नहीं करता। उत्तराखंड आज भी उपेक्षा को झेल रहा है। राज्य बनने से पहले कम से कम नेताओं और आम लोगों के बीच संवाद भी रहता था। नेता लोगों से सीधे जुडे रहते थे। आज क्या सत्ता पक्ष, क्या विपक्ष सब सामंती शैली में चल रहा है। छोटे छोटे क्षत्रप बन गए हैं। नेताओं के दायरे सिमट गए हैं।

पड़ोस के हिमाचल को देखकर मन में टीस -सी होती है। काश हमें भी कोई डा परमार जैसा नेता मिल पाता। अफसोस, कांग्रेस और आपकी भाजपा दोनों हमें ऐसा नेता नहीं दे पाए। राज्य को आगे ले जाने के लिए जो सोच और समर्पण चाहिए था , शायद उसका गहरा अभाव है। काश हिमाचल की तरह इस राज्य को भी उसके संसाधनों से आगे बढाया होगा। यहां पर्यटन, कृषि -बागवानी , योग , आयुर्वेद और जल संपदा पर काम होता। देवस्थल, तीथार्टन, पर्यटन, साहसिक यात्रा, झील, बुग्याल, क्या नहीं है यहां। लेकिन दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने जैसे तालमेल कर लिया कि इस बार हमारी बारी, अगली बार तुम्हारी बारी। उत्तराखंड ठहर गया । उत्तराखंड ने सत्ता के लिए झपटते राजनीतिक दल ही नहीं देखे, सुंदर मित्र विपक्ष भी देखे।

जिस उत्तराखंड में 70 प्रतिशत क्षेत्र ग्रामीण है , वहां जिम्मेदार नेता अब पिकनिक मनाने के नाम पर भी नहीं ठहरते। गांवों में जाना भूल गए हैं नेता। कितना अच्छा होता आप एक रात किसी हिमालय क्षेत्र के गांव में बिताते। गांव की संस्कृति को लेकर कितना बड़ा संदेश देश में जाता। लेकिन यहां तो नेताओ के लिए देहरादून उधमसिंह नगर और हल्दावानी हरिद्वार ही उनकी अलकापुरी हो गई है। और आप भी अगर कभी आएंगे तो देहरादून और नैनीताल में ही तो सभा करके चले जाएंगे। कुछ नेताओं के लिए मसूरी नैनीताल आना ही उत्तराखंड है। माननीय प्रधानमंत्रीजी, गांवों के हालात खराब है। उत्तराखंड में ऐसे गांव भी है जहां चीन युद्ध के बाद युवा नहीं रहे तो शहीदों का गांव कहलाए। ऐसे कई गांव हैं जहां एक व्यक्ति भी नहीं रहता। और एक गांव ऐसा भी है जहां एक महिला अकेली रहती है।

कौन बताएगा आपको इन गांवों के हालात। उत्तराखंड का भाजपा सगठन तो बताएगा नहीं। क्योंकि अगर 15 साल का ये परिणाम है तो इस नतीजे के लिए कांग्रेस ही नहीं , भाजपा भी जिम्मेदार है। बल्कि ज्यादा जिम्मेदार है। आखिर राज्य बनने के बाद सत्ता भाजपा ने संभाली थी। उसे एक अच्छी दिशा देनी थी। खनन कभी नहीं रुका। कमल या हाथ, सत्ता के बिचौलिए हमेशा सचिवालय मंत्रालय के आसपास मंडराते रहे। वही परम खास हो गए। असली उत्तराखंड उनके लिए ही बना।

आपको ज्यादा क्या लिखे। हाल में मुंबई गया था । प्रवासियों का मेला था। सुंबह दो बच्चे प्रागण में आए । मेले की भूमि और मंच को निहार रहे थे। वो शाम के आयोजन में नहीं आ सकते थे। जिस होटल में काम करते थे, वहां से अनुमति नहीं मिलती थी। सुंबह निहारते थे कि यहीं शाम को हमारे उत्तराखंडी लोग , कलाकार आते होंगे। वे अपने गांव को याद इसी तरह कर सकते थे। दोनों बच्चों ने यही कहा कि हमारे नेताओं ने हमारे लिए कुछ किया होता तो यहां क्यों आना पडता।

गांव कस्बों में ढंग के स्कूल नहीं, अस्पताल नहीं, बाग -बगीचे नहीं, उद्यम नहीं, नौकरी नहीं। क्या केसरिया, क्या भगवा , क्या हरा, क्या लाल, हर रंग फीका हो गया है। यहां शांतिप्रिय लोग हैं । इस क्षेत्र में दंगे ,आगजनी , पथराव नहीं होते। लोग झूमेलो -चौफला गाकर नाचकर अपने सुख दुख को बांटते हैं। इसी वेदना में पहाड़ों में न्यूली गाई जाती है।

माननीय प्रधानमंत्रीजी ,
उत्तराखंड में मेधा है, प्रतिभा है, लोग काम करना चाहते हैं।यहां प्रगति की तमाम संभावनाएं हैं। लेकिन उत्तराखंड की राजनीति से लोग हताश है। गहरे रूप से हताश हैं।
आइए कुछ दिलासा तो दीजिए। मंदाकिनी और पिंडर घाटी , मुनस्यारी, चंपावत और दूर गंगोत्री आराकोट जौनसार , यमुना घाटी के क्षेत्र में न सही, एक बार केदारनाथ भगवान के दर्शन के लिए तो आइए। वो एक तीर्थयात्री की बड़ी प्रतिक्षा कर रहे हैं , उन तीर्थयात्री का नाम श्री नरेंद्र दामोदर भाई मोदी है।

वेदविलास उनियाल ( पत्रकार ) देहरादून