”साहब” की पुत्री के PG में दाखिले के नजराने में जायेगा एक अस्पताल

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अस्पताल को PPP मोड में  देने का आखिर क्या है ‘’खेल’’

बिहार के मेडिकल माफ़िया की भी सूबे के सरकारी अस्पतालों पर नज़र 

जनता का तो कोई फायदा नहीं लेकिन PPP पर लेने और देने वाले होंगे मालामाल 

देहरादून : उत्तराखंड के स्थानीय लोगों के हक़-हकूकों पर डाका डालते हुए कैसे अपना उल्लू सीधा करना है यह कोई यहाँ के नौकरशाहों से सीखे। राज्य आंदोलनकारी पिछले कई सालों से क्षैतिज आरक्षण की मांग को लेकर सड़कों पर हैं , राज्य के बेरोजगार आज भी रोज़गार के लिए पलायन कर रहे हैं। लेकिन राज्य की ब्यूरोक्रेसी सहित राज्य ने नेताओं को इससे कोई लेना देना नहीं। हाँ अपने परिवारों का कैसे भला हो इस मसले पर राज्य के नेता और ब्यूरोक्रेट एक मत हैं इसके लिए राज्य के संसाधनों का कैसे दोहन किया जाय इस पर भी ये सब एक हैं । एक मत नहीं हैं तो केवल राज्य के आम बेरोजगार को कैसे रोज़गार मिले , राज्य के पढ़े लिखे नौजवान को कैसे रोज़गार या उसे कैसे अच्छा प्रशिक्षण दिया जाय ऐसे अहम्  विषय पर इनके कदम ठिठक जाते हैं। 
 
ताज़ा मामला राज्य की ब्यूरोक्रेसी  से जुड़ा है और वह भी एक ऐसे ब्यूरोक्रेट से जुड़ा है जो आजकल ख़ासा सुर्ख़ियों में है, सुर्ख़ियों में हो भी क्यों नहीं क्योंकि वह ”सूबे के जहाँपनाह” का ख़ास सिपहसालार जो है. राज्य के इस चर्चित ब्यूरोक्रेट की पुत्री ने अभी -अभी एक नामी- गिरामी संस्थान  से डॉक्टरी की पढ़ाई जो की है और उसे अब अपनी पुत्री को परास्नातक (PG) करवाना है।  इसके लिए संस्थान को लगभग एक करोड़ रूपये फीस देनी पड़ रही है वैसे चर्चित इस ब्यूरोक्रेट के पास पैसे की कोई कमी नहीं।  अपने सेवाकाल में खूब धन-धान्य के साथ -साथ खूब अचल व चल संपत्ति का मालिक भी है। जो इन्होने लूट-खसोट कर इकठ्ठा की है, और अभी भी दोनों हाथों से लूट कर रहा है। 
 
देहरादून महानगर सहित  राजधानी के आसपास के इलाकों से लेकर देश की राजधानी व एक अन्य प्रान्त तक में यहाँ से कमाई कर लगाया गया इन्वेस्टमेंट भी अच्छा खासा है।  लेकिन  कहावत है न चमड़ी चली जाय लेकिन दमड़ी न जाय के सूत्र पर ये काम करते हैं, छोटी बेटी को देश से बाहर खुबसुरतों  के शहर पेरिस में शिक्षा लेने भेजना भी इनका मकसद है और इसके लिए भी कवायद भी जारी है। इन बेटियों की खिदमत में अभागे उत्तराखंड के अभागे बेरोजगार देश की राजधानी में साहब के फ्लैट पर तैनात थे, साहब की बेटियों का गुरुर भी इतना ज्यादा कि  अपने वस्त्रों तक को उत्तराखंड के इन अभागे बेरोजगारों से धुलवाने के मांमले में एक बार सुर्ख़ियों में आ चुके हैं,जब उत्तराखंड के इन युवाओं ने इस तरह के काम करने से साफ़ मना कर दिया था तब बेचारे और अभागे ये युवा नौकरी से भी हाथ धो बैठे थे और मामला सुर्ख़ियों में आने से पहले मैनेज कर लिया गया था। 
 
खैर अब आते हैं साहब के एक ताज़े मामले पर तो साहब आजकल अपनी बेटी को मेंडिकल में PG करवाने का जुगत भिड़ा रहे हैं ”जहाँपनाह” का ख़ास दरबारी होने का भी फायदा लेकर साहब सूबे की राजधानी से सटे एक अच्छे चलते हुए सरकारी अस्पताल को PPP मोड में राज्य के नामी -गिरामी मेडिकल कॉलेज को देना चाहते हैं। और इसके एवज में अपनी पुत्री का उस मेडिकल कॉलेज में दाखिला।  जबकि तिवारी सरकार से लेकर आज तक राज्य में PPP मोड़ में दिए गए लगभग सभी सरकारी  अस्पतालों का हश्र सबके सामने है राज्य वासियों को न तो PPP मोड़ में देने का कोई फायदा हुआ और न सरकार को। हाँ फायदा हुआ तो पूर्व स्वास्थ्य मंत्रियों  से लेकर उन चंद आला अधिकारियों का जिनमें कद्दू काटकर बंटा था। 
 
डोईवाला सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को निजी संस्था के हवाले किए जाने के खिलाफ इलाके की जनता भी है यहाँ के लोगों का कहना है कि सरकार जब डोईवाला अस्पताल में एक करोड़ 65 लाख रुपये का बजट देने की घोषणा कर रही है, तो यहां निजी संस्था के चिकित्सकों की सेवाएं लेने की क्या जरूरत है। सरकार अपने ही डॉक्टरों को अस्पताल में क्यों नहीं तैनात करती। 
 
बर्बाद हो चुके हैं नौगांव, सहिया से लेकर रायपुर तक के सरकारी अस्पतालों को PPP मोड में देने का हश्र आज प्रदेश की जनता के साथ साथ प्रदेश के स्वास्थ्य महकमे और सूबे की ब्यूरोक्रेसी तक के सामने हैं ,लेकिन सरकार  ने न अब भी इनसे कोई सबक है।  सीखा और अब डोईवाला सहित राज्य की तराई के इलाकों के कई अच्छे अस्पतालों को बिहार की एक संस्था सहित सूबे के एक मेडिकल कॉलेज  को देने का तिकड़म किया जा रहा है। सूत्रों का तो यहाँ तक दावा है कि ”साहब” ने ”जहाँपनाह” को उल्टी सीधी पट्टी पढ़ाकर इसके लिए राज़ी भी कर दिया है।  अब इससे राज्य के लोगों को चिकित्सा सुविधा तो जो मिलेगी वह सबके सामने है लेकिन ”साहब” का दोनों हाथों से काम हो जायेगा कहीं से ”माल” मिलेगा तो कहीं अपनी पुत्री का PG में दाखिला।