11 का अंक राहुल और कांग्रेस के लिए शुभकारक बना !

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  • ”बदलाव” के नारे के साथ पिछले साल की थी राहुल ने अपनी पारी की शुरूआत 
देवभूमि मीडिया ब्यूरो 
देहरादून : राहुल ने पिछले साल 11 दिसंबर को ही पार्टी की कमान संभाली थी और इस साल 11 दिसम्बर को पांच राज्यों में हुए विधान सभा चुनाव के परिणामों से जहां कांग्रेस को जीत की ऑक्सीजन मिली वहीं राहुल गाँधी के नेतृत्व में विजय। 11 का अंक राहुल और कांग्रेस दोनों के लिए शुभकारक रहा वहीं भाजपा के लिए यह अंक अशुभ।  कहाँ भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देख रही थी और कहाँ वह खुद ही 15 -15  सालों से शासन करने वाले राज्यों से बेदखल हो गयी।

पिछले साल 11 दिसंबर के बाद राहुल के कार्यकाल में पार्टी ने कुछ उपचुनाव जरूर जीते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष ने भले ही भाजपा को हराने की काट निकाल ली हो लेकिन अभी उन्हें अपनी सरकार वाले राज्यों को बचाए रखना मुश्किल हो रहा है। इस चुनाव में भी एक राज्य मिजोरम खोना पड़ा है। कर्नाटक चुनाव हारने के बाद भी कांग्रेस का भाजपा से राजनीतिक जीत हासिल करने का श्रेय भी राहुल गांधी को जाता है क्योंकि स्थानीय स्तर पर बात बनती नहीं दिख रही थी।          

राहुल ने अपनी पारी की शुरूआत वक्त के बदलाव के नारे के साथ की। जिस कांग्रेस को 2014 के बाद से लगातार हार का मुंह देखना पड़ रहा हो उसमें बदलाव का दौर शुरू हुआ है। जिस राहुल गांधी पर राजनीतिक गंभीरता न होने के आरोप भाजपा और पार्टी के भी कुछ नेता लगाते थे। उसने मध्यप्रदेश में 25 रैली चार रोड शो, राजस्थान और छत्तीसगढ में 19-19  रैलियां करके चुनाव की तस्वीर बदलने में अहम भूमिका निभाई। एक ओर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपाशासित राज्यों में सत्ता विरोधी लहर को बचाने के लिए  रैलियां कर डैमेज कंट्रोल में जुटे थे वहीं राहुल बदले राजनीतिक माहौल को लोगों के बीच कांग्रेस में फिर से विश्वास जिताने में जुटे थे।  

राहुल गांधी ने गुजरात चुनाव में भाजपा की कमजोर नब्ज को पकड़ लिया था। किसानों से जुड़ी समस्याएं और ग्रामीण इलाकों के विकास को लेकर किए गए दावों को राहुल ने भाजपा के खिलाफ हथियार बनाया। कांग्रेस गुजरात में भाजपा को सरकार बनाने से रोकने में सफल तो नहीं हुई लेकिन मार्ग में बाधा जरूर पैदा कर दी। राहुल ने इन तीनों राज्यों में भी गांव-किसान के साथ स्थानीय मुद्दों पर फोकस किया। भाजपा नेताअें की पूरी कोशिश कांग्रेस को ध्रुवीकरण और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर खींच कर लाने की रही लेकिन राहुल ने गुजरात से सीख लेते हुए खुद को उसमें उलझाने की बजाय केंद्र सरकार और राज्य सरकार को उनके कामकाज पर घेरा।  

राहुल ने बीते एक साल के दौरान संगठन के ढांचे में व्यापक बदलाव किया है। खासकर बूथ लेवल पर पार्टी को खड़ा करने और एक राज्य को चार हिस्सों में बांटकर अखिल भारतीय स्तर का एक सचिव तैनात करना भी फायदेमंद रहा। इन राज्यों में संगठनात्मक मजबूती के साथ जमीनी स्तर से जुड़े उम्मीदवारों की खोज में भी इनकी अहम भूमिका रही। राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष के अलावा तीन-चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की रणनीति भी कारगर रही है और इन चुनावों में शहरी इलाकों में भी कांग्रेस सीटें निकालने में सफल रही है।  
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