कांग्रेस-भाजपा दो दर्जन सीटों पर तीसरे-चौथे नंबर की पार्टियां

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देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून । उत्तराखंड में पारंपरिक रूप से कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही सत्ता का संघर्ष चलता रहा है। करीब डेढ़ दशक से दोनों राष्ट्रीय दल ही प्रदेश की अधिकतर सीटों पर काबिज रहे हैं, लेकिन पिछले तीन चुनावों में कईं ऐसी सीटें रही हैं, जहां राष्ट्रीय दल लगातार हारते रहे हैं। कहीं बीजेपी तीसरे पायदान पर रही तो कहीं कांग्रेस।

कुछेक सीटों पर तो चैथा पायदान नसीब होता रहा है। दो हजार सत्रह के चुनावी समर में क्या कांग्रेस और बीजेपी अपनी इन कमजोर कडिय़ों को दुरुस्त कर पाएंगे, यह बड़ा सवाल है। 2002 में हुए सूबे के पहले विधानसभा चुनाव से लेकर 2012 में हुए तीसरे विधानसभा चुनाव तक सत्ता का पेंडूलम कांग्रेस और बीजेपी के बीच झूलता रहा है। वह भी तब जब हर बार विधानसभा की सत्तर सीटों में से डेढ़ से दो दर्जन सीटों पर कांग्रेस या बीजेपी तीसरे या चौथे स्थान पर रही है। लेकिन मजबूत वैकल्पिक राजनीति के अभाव में कांग्रेस-बीजेपी बहुमत की बैसाखी का बाहर से जुगाड़ कर बारी-बारी से सत्ता सिंहासन पर काबिज होती रही हैं।

अगर महज 2012 के चुनाव नतीजों की बात करें तो 23  सीटों पर ये दोनों राष्ट्रीय दल तीसरे या चैथे पायदान पर रहे हैं। सत्ताधारी कांग्रेस की बात करें तो 2012 में कांग्रेस सात सीटों पर तीसरे पायदान पर रही और चार सीटों पर करारी शिकस्त खाते हुए वह चौथे पायदान पर खिसक गयी. जबकि बीजेपी ग्यारह सीटों पर तीसरे पायदान पर और मंगलौर में पिछड़कर चौथे स्थान पर सिमट गयी. राष्ट्रीय दलों को दो दर्जन सीटों पर बेअसर साबित करने में कहीं बसपा तो कहीं यूकेडी या निर्दलीयों ने कमाल दिखाया था।
कांग्रेस और बीजेपी को तीसरे और कुछ सीटों पर चौथे नंबर पर धकेलने में मुख्य भूमिका बीएसपी ने निभायी। बसपा ने एक दर्जन सीटों पर कांग्रेस या बीजेपी को तीसरे या चौथे स्थान पर खिसकने को मजबूर कर दिया. जबकि नौ सीटों पर निर्दलीयों ने राष्ट्रीय दलों का खेल बिगाड़ दिया। दो सीटों पर उत्तराखंड क्रांति दल भारी पड़ा। पहले बीजेपी की बात करें तो 2012 में यमुनोत्री में यूकेडी के प्रीतम पंवार ने जीत दर्ज कर कांग्रेस को रनर अप तो बीजेपी को तीसरे पायदान पर पहुंचा दिया, जबकि द्वाराहाट में कांग्रेस की जीत और यूकेडी के पुष्पेश त्रिपाठी के रनर अप रहने से बीजेपी तीसरे नंबर पर सिमट गयी।

चकराता में मुन्ना सिंह चौहान की उत्तराखंड जनवादी पार्टी के चलते बीजेपी महज तीन फीसदी वोटों के साथ तीसरे पायदान पर सिमट गयी। टिहरी में भी निर्दलीय दिनेश धनै और कांग्रेस कैंडिडेट किशोर उपाध्याय की टक्कर ने बीजेपी को तीसरे पायदान पर पहुंचा दिया. जबकि मंगलौर में बसपा, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल के तिकोने मुकाबले में बीजेपी चौथे पायदान पर कुल दो हजार इकसठ वोट पर हांफ गयी।

कर्णप्रयाग में भी बाजी कांग्रेस के एपी मैखुरी मार गये और निर्दलीय सुरेन्द्र सिंह नेगी के चलते बीजेपी तीसरे स्थान पर खिसक गयी. जबकि बसपा फेक्टर के चलते बीजेपी चंपावत, पिरान कलियार, झबरेड़ा, खानपुर, भगवानपुर और जसपुर में सीधी लड़ाई से पिछड़कर तीसरे नंबर पर चली गयी।

यदि 2012 में एक सीट से बढ़त बनाकर सूबे की सत्ता पर काबिज होने वाली कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस बीएसपी के चलते भीमताल, सितारगंज और ज्वालापुर सुरक्षित सीट पर तीसरे पायदान पर पहुंची. जबकि निर्दलीयों के चलते पुरोला, सोमेश्वर और लालकुआं में तीसरे नंबर पर खिसक गयी। लालकुंआ में पार्टी छोड़कर बागी लड़े हरीश चन्द्र दुर्गापाल के चलते कांग्रेस पिछड़ी. जबकि देवप्रयाग में पार्टी के बागी मंत्री प्रसाद नैथानी की जीत ने कांग्रेस कैंडिडेट शूरवीर सजवाण को चौथे नंबर पर पहुंचा दिया।

गदरपुर, रानीपुर और लक्सर में बसपा और निर्दलीयों के दमखम दिखाने से कांग्रेस चौथे पायदान पर सिमट गयी. लैंसडाउन में टीपीएस रावत के रक्षा मोर्चा ने भी कांग्रेस को तीसरे नंबर पर पछाड़ दिया था। हालांकि पिछले पांच सालों में इन सीटों पर सियासी समीकरण भी खूब बदले. सितारगंज उपचुनाव में विजय बहुगुणा बीजेपी विधायक किरण मंडल से सीट खाली करा चुके थे, लेकिन आज बहुगुणा खुद बीजेपी में हैं और किरण मंडल कांग्रेस में।

सोमेश्वर से अजय टम्टा 2014 में लोकसभा पहुंचे तो कांग्रेस प्रत्याशी रेखा आर्य ने उपचुनाव में सीट जीत ली लेकिन आज रेखा आर्य भी बीजेपी का दामन थाम चुकी हैं. भीमताल के बीजेपी विधायक दान सिंह भंडारी इस्तीफा देकर कांग्रेसी रंग में रंग चुके हैं. जबकि निर्दलीय विधायक हरीशचन्द्र दुर्गापाल और मंत्री प्रसाद नैथानी पीडीएफ के सहारे कांग्रेस के करीबी बन चुके हैं। गदरपुर, रानीपुर और लक्सर में हालात बेहतर करने के लिये कांग्रेस को 2017 में भी खूब पसीना बहाना होगा। लैंसडौन में कांग्रेस को तीसरे नंबर पर धकेलने वाला उत्तराखंड रक्षा मोर्चा अब एक्टिव नहीं है और टीपीएस रावत भी कांग्रेसी खेमे में जाते दिख रहे हैं। क्या सत्ता में दोबारा वापसी के सपने देख रही कांग्रेस 2017 में इन सीटों पर कमजोर प्रदर्शन सुधार पायेगी।
बहरहाल, पिछले चुनाव में तेईस सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी का प्रदर्शन खासा निराशाजनक रहा था, ऐसे में इस बार दोनों राष्ट्रीय दलों के रणनीतिकार इन कमजोर सीटों पर कमाल दिखाने के लिये कैसी रणनीति बनाते हैं, इस पर जीत का दारोमदार रहेगा। साथ ही कांग्रेस-बीजेपी का खेल बिगाडऩे वाली राजनीतिक शक्तियों के सामने भी अपना स्कोर बोर्ड और बेहतर करने की चुनौती है।